Book Title: Subodhi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 28
________________ गया ) वर्तमान (जो समय सन्मुख है) और भविष्यत्काल (जो आगामी अनंत काल आवेगा) की समस्त. हुई, होरही व होने वाली अवस्थाओं को निर्धान्त रूप से जानता है, वही सच्चा वस्तुओं का स्वरूप बता सकेगा, वही हितोपदेशी हो सकेगा, उसके सिवाय अन्य अल्पज्ञानी हितोपदेशी नहीं हो सकते, क्यों 'कि जो स्वयं अज्ञानी है वह बिना जाने क्या उपदेश करेगा ? वह तो पागल के समान कभी कुछ कभी कुछ बकेगा, उसका कथन पूर्वाऽपर विरोध सहित, बाद प्रतिवाद में नहीं ठहर सकने वालो, मिथ्यात्व का पोषक, संसार दुख की परम्पग बढ़ाने वाला ही होगा, वास्तव में यदि मार्ग दर्शक ही जव अंधा होगा, तो उसका साथ करने वाले क्यों नहीं मार्ग भूलकर कंटकाकीर्ण स्थल को प्राप्त होंगे, इसलिये जैसे रागी द्वेषी, रागद्वेषादि के वश हुधा सत्योपदेश नहीं देसकता, वह भक्तों पर अनुग्रह व अभक्तों का निग्रह चाहता है जिससे प्रसन्न होगा, उसे सीधा मार्ग बता देगा और अप्रसन्न होगा, तो कुमार्ग बनादेगा। वह सर्वहितकारी नहीं है, वैसे अल्पज्ञानी स्वयं अंध समान है। इसलिये, जो सर्व दोषों से रहित और पूर्ण ज्ञानी ( सर्वज्ञ ) होगा वही हितोपदेशी होता है, अन्य नहीं । इसलिये उक्त तीन विशेषण (सर्वज्ञता, वीतरागता और हितोपदेशकर्ता सहित जो देव है वही हमारा पूज्य व आराध्यदेव हो सकता है, और वह जिन अर्थात अर्हत सिद्ध ही हो सकते हैं, अन्य नहीं हां यदि इन विशेषणों सहित देव को कोई ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शिव, बुद्ध, खुदा, गोड, अल्ला, ब्रह्मा आदि किसी नाम से स्मरण करें, उसमें कोई विवाद नहीं है, स्वरूप यदि अन्यथा हो तो विवाद है, इसलिये सच्चे स्वरूप को दृष्टि

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