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विष्णुं चक्र धंर मदन वाण' बश,
; लज्जा तज रमता गोपिन में। . क्रोधानल जाज्वल्यमान पुनि,
जाकर होत प्रचण्ड परिन में ॥२॥ शंभू खट्वा अङ्ग सहित पुनि,
गिरिजा भोग मगन निशि दिन में । हस्त कपाल व्याल भूषण पुनि,
मुण्ड माल तन भस्म मलिन में ॥३॥ श्री अर्हन्त परम वैरागी,,
दोष न लेश प्रवेश न इन में। भागचन्द्र इनका स्वरूप लख,
. अब कहो पूज्यपना है किन में॥४॥ इसी प्रकार गणेशजी की कथा भी विचित्र है. अर्थात् पार्वतीजी ने शंकरजी की गैर हाजिरी में अपने शरीर के मैल से एक मनुष्याकार का पुतला बनाकर उसे सजीव कर दिया
और अपना पुत्र मान कर द्वारपाल के स्थान पर बैठा दिया. जव शंकरजी बाहर से आए तो अपने घर पर, पर पुरुष को बैठा देखकर क्रोधित होगए और उसका मस्तक काट कर फेंक दिया, यह वातं पार्वती को मालूम हुई, तो वे रुदन करने लगी, तवं शंकरजी चिन्ता में पड़े और कटा हुआ मस्तक ढूढ़ने निकले सो तीन लोक में कहीं न पाया; तव एक हाथी के बच्चे का सिर काट करगणेश (पार्वती द्वारा मैल से उत्पन्न बालक) के लगा