Book Title: Subodhi Darpan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 29
________________ ( २८ ) में रखकर हो अपनो आराध्य देव निश्चित करना चाहिए, उसे ही श्रादर्श बनाना.चाहिये, केबल नाममात्रं सुन कर मोहित होजाना या ठगाना नहीं चाहिए। क्यों कि पूजा आदर्श की कीजाती है, हमको जिस गुण की प्राप्ति करना है, उसी गुण वाले की सेवा करना चाहिए, तभी सफल मनोरथ हो सकते हैं, इसलिये यहां हमको यह बिचारना होगा, कि हमको क्या चाहिए ? तो सहज उत्तर यही है कि "सुख की प्राप्ति और दुखों का नाश जैसा पहिले बता पाएं हैं, वह सुग्व निराकुल दशा में होता है, निराकुलता कर्मों के छूटने पर होती है, कर्मों का अभाव इन्द्रियविषय और कपाय क्रोध मान माया लाभ व मोहादि के अभाव में होता है। अतएव कर्मों से छूट कर निराकुल स्वरूप अक्षय सुख प्राप्त करना ही हमारा अभीष्ट लक्ष्य है । तब हमको ऐसेही देव की सेवा करना चाहिए जो स्वयम् आदर्श बनकर मोक्ष ( सच्चे सुख) को प्राप्त हो चुका हो । . . . . . . ... - अर्थात् जो मोक्ष मार्ग का श्रादर्श हो, तब खूब बिचार करके परीक्षा करने पर यही प्रतीत होता है, कि कर्म 'बन्ध के. कारण जो राग द्वेषादि दोष थे, उनका जिसने नाश कर दिया है, जिससे उसे पूर्णज्ञान हो गया है और उससे, उसने सत्यार्थ तत्व संसारीप्राणियों को बता दिए हैं, वही जिन अहंत सर्वज्ञ वीतराग परमात्मा हमारा देव आराध्य तथा पूज्य हो सकता है, अन्य नहीं, क्योंकि जो दोष हम में हैं, वे. ही. हमारे आदर्श आराध्य में हैं तब उसको मानने पुजने से हमारे वे दोष और भी

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