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सेवा, इन आजीविका सम्बन्धी तथा चक्की पीसना ऊखल में कूटना, चूल्हा जलाना, बुहारी (झाडू) लगाना, पानी भरना, पृथ्वी खोदना, वखादि धोना सम्हालना, घर बनाना, बाग़ लगाना, भोजन पकाना, रांधना, वृक्षादि बनस्पतियां कटवाना, छीलना, खोटना, पवनादि करना, कराना आदि गृहस्थी तथा स्वशरीर सम्बन्धी शृङ्गार संस्कार आदि आरम्भों से रहित हैं अर्थात् जो ऐसे कोई भी आरम्भ नहीं करते न कराते और न अनुमोदना करते हैं, कि जिन से किन्हीं बस ( दो इन्द्री, तीन इन्द्री, चार इन्द्री तथा पांच इन्द्री ) तथा स्थावर पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि तथा बनस्पति आदि एकेन्द्रिय ) प्राणियों का घातः हो तथा धन ( पशु आदि ) धान्य ( अनाज आदि खाद्य पेय ) क्षेत्र ( खेती के योग्य जमीन, बाग़, जङ्गल, पहाड़, कन्दरादि ) वस्तु ( गृह मन्दिरादि ) हिरण्य ( मुहुर, रुपया, पैसा आदि ) सुवर्ण ( होरा, पन्ना, माणिक, मोती, मूंगा आदि रत्न तथा सोना, चांदी आदि धातुएँ वा इन से बने हुए आभूपणादि ) दासी (खी सेविका ) दास [ पुरुष सेवक ] कुप्य [ वस्त्रादि ]. और भाण्ड (बासन वर्तनादि ) ये बाह्य परियह और मिथ्यात्व ( तत्त्व श्रद्धान याकुदेवं, कुगुरु कुशास्त्र तथा हिंसायुक्त धर्म मानना ) राग, द्व ेष, क्रोध, मोन, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, ग्लानि और वेद (स्त्री, पुरुष, नपुंसक रूप भाव ) इन १४ अन्तरङ्ग परिग्रहों से रहित अर्थात् बाहर और भीतर सर्वथा नग्न (दिगम्बर) कि जिनके शरीर पर एक लङ्गोट मात्र भी परिग्रह न हो, केवल शौचादि जन्य अंशुचि की शुद्धि के अर्थ प्रासुक जल रखने का एक लकड़ी या मिट्टी का पात्र [कमण्डलु ] किसी जीव को शरीर के हलन चलन होने या गमनागमन करने
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