Book Title: Sthananga Sutra Part 01 Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak SanghPage 15
________________ [14] ४३७ विषय पृष्ठ विषय नैरयिक आदि के आहार ४००-४०३ तैराक-भेद ४३२ जाति-आशीविष ४००-४०३ कुम्भ और पुरुष ४३२-३६. व्याधि और चिकित्सा ४०३-४०७ चतुर्विध उपसर्ग चिकित्सक, पुरुष और व्रण-भेद ४०३-४०७ | चतुर्विध कर्म ४३९-४४ श्रेय और पाप की दृष्टि से पुरुष-भेद ४०७ | चतुर्विध संघ ४३९-४४ वादियों के समोसरण ४०७-४१० | चार प्रकार की बुद्धि ४३९-४४ मेघ और पुरुष, माता-पिता, राजा ४१० चार प्रकार के संसारी जीव, सर्व जीव ४४४ चार प्रकार के मेघ ४१३ मित्र एवं मुक्त की चौभंगी ...-- ४४५ करण्डक और आचार्य ४१४-१६ / पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की गति और आगति शाल-तरु और आचार्य ४१४-१६ द्वीन्द्रिय जीवों सम्बन्धी संयम-असंयम ४४६ मत्स्य-वृत्ति समान भिक्षुवृत्ति ४१६ | सम्यग्-दृष्टि पंचेन्द्रिय जीवों की क्रियाएँ, ४४७ गोले के समान साधक - ४१७ गुणों के विनाश और विकास के कारण ४४७ पत्र-तुल्य-पुरुष, चटाई तुल्य पुरुष ४१७-१९ शरीरोत्पत्ति के मूल कारण ४४७ चतुर्विध पशु, पक्षी और क्षुद्र प्राणी ४१९ / धर्म-द्वार पक्षियों जैसे भिक्षुक ४२०-२१ नरकादि आयुष्य बांधने के कारण सबलता दुर्बलता ४२०-४२१ चतुर्विध वाद्य-नाटक आदि ४४९ संवास-भेद ४२३ सानत्कुमार, माहेन्द्र कल्पदेव विमान-वर्णन ४५० चार प्रकार का अपध्वंस ४२४ / चतुर्विध उदक-गर्भ ४५२ प्रव्रज्या-भेद ४२६-२८ चतुर्विध मानुषी-गर्भ ४५२-५३ संज्ञा विवेचन ४२८-३० उत्पात पूर्व की चार चूलावस्तुएँ उत्तान और गम्भीर ४३०-४० चार समुद्र, भावतं और कषाय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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