Book Title: Sthananga Sutra Part 01 Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak SanghPage 14
________________ [13] विषय पृष्ठ | विषय सर्व भेद . ३३२ फलोपम आचार्य और साधक ३६७ मानुषोत्तर के चार कूट • ३३३ | धर्म और व्यक्ति ३७० सुषम-सुषमा समय का काल-मान - ३३४ |अनाराधक और आराधक के रूप ३७१-३७२ . जम्बूद्वीपवर्ती चार अकर्म-भूमियाँ ३३५ चतुर्विध श्रमणोपासक ३७३-३७४ चारवृत्त वैताढ्य, चार महाविदेह ३३५ | श्रमणोपासकों की अरुणाभ विमान में स्थिति ३७४ वक्षस्कार पर्वत चार वन, चार देव-अनागमन-आगमन के कारण . ३७५-७८ अभिषेक शिलाएँ जम्बूद्वीप के चार द्वार ३३६ लोकान्धकार और लोक प्रकाश के कारण ३७९ अन्तरद्वीप-वर्णन ३३७-४० चतुर्विध दुःख-शय्या ३८० पाताल-कलश, आवास पर्वत . ३४०-४१ चतुर्विध सुख-शय्या - ३८२ धातकीखण्ड-परिमाण चतुर्विध अवाचनीय एवं वाचनीय. ३८५ नन्दीश्वर अधिकार ३४३-३४ अनेक दृष्टियों से पुरुष-भेद ३८६ अंजनक पर्वत का वर्णन घोडे की उपमा और पुरुष . ३८९ चतुर्विध सत्य.. आजीवक-मतानुसार तप-विधान - ३९२ सिंह-सियार संयम पालन । ३९३ संयम, त्याग और अकिंचनता के भेद चार लक्खा, द्विशरीर जीव ३५२ सत्त्वदृष्टि से पुरुष-भेद ३९५ . चतुर्थ स्थान : तृतीय उद्देशक चतुर्विध प्रतिमा ३९५ उदक और भाव .. ., जीव-स्पृष्ट एवं कार्मण मिश्रित शरीर पक्षी और मनुष्य ३५३-५४ ३९५ वृक्षोपम व्यक्ति . . . अस्तिकाय स्पृष्ट लोक प्रदेश-समानता श्रमणोपासक के विश्राम स्थान ३९६ उदय अस्त चौभंगी दुर्दश्य चार शरीर । ३९६ । युग्म भेद ३५७ | स्पर्श द्वारा अनुभूत पदार्थ । ३९६ चार प्रकार के शूर अलोक में प्रवेश न हो सकने के कारण ३९७ ३५७ कुल और मानव ३५८ चतुर्विध ज्ञात एवं न्याय ३९७ असुर कुमारों की लेश्याएँ ३५९ संख्यान, अन्धकार एवं प्रकाश के कारण ३९९ यान, वाहन, सारथि एवं पुरुष ३६०-६२ चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक .. पुष्प और मानव व्यक्तित्व ३६३-६४ | चार प्रसर्पक ४००-४०३ ३५३ - ३९५ ३३५/ ३५५ ३५७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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