Book Title: Sramana 2008 10
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००८
६. इयमद्य निशास पूर्वा सौमित्र प्रहिता वनम् ।
वनवानस्य भद्रं ते स नोकण्ठितुमर्हसि ।। पश्य शून्यान्यरण्यानि रुदन्तीव समन्ततः।
यथा निलयमायद्भिर्निलीनानि मृगद्विजैः।। वही, (अयोध्याकाण्ड), ४६.३ ७. बहूना वितता यज्ञा द्विजानां य इहागताः।
तेषां समाप्तिरायत्ता तवं वत्स निवर्तने ।। भक्तिमन्ति हि भूतानि जङ्गमाजङ्गमानि च। याचमानेषु राम त्वं भक्तिं भक्तेषु दशेये। वही, (अयोध्याकाण्ड) ४५,
२८-२९
८. आचारांगसूत्र, १/१/५/४४ ९. वराङ्गचरित, २२/६९-७२ १०. धर्मशर्माभ्युदय, १/४९, पं० पन्नलाल जैन साहित्याचार्य, पृ०-११ । ११. आचारांगसूत्र, उ०-५, गाथा-४५ १२. समवायांगसूत्र, समवाय-१७
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