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५. मोक्ष आन्तरिक प्रकृति या स्वस्वभाव है । वही एकमात्र परम मूल्य हो सकता है, क्योंकि उसमें हमारी प्रकृति के सभी पक्ष अपनी पूर्णं अभिव्यक्ति एवं पूर्ण समन्वय की अवस्था में होते हैं । भारतीय और पाश्चात्य मूल्य सिद्धान्तों की तुलना
अरबन और एबरेट ने जीवन के विभिन्न मूल्यों की उच्चता एवं निम्नता का जो क्रम निर्धारित किया है, वह भी भारतीय चिन्तन से काफी साम्य रखता है । अरबन ने मूल्यों का वर्गीकरण इस प्रकार किया है
जैविक
मूल्य
1
सामाजिक
1
IT
अतिजैविक
आध्यात्मिक
T
आर्थिक शारीरिक मनोविनोद संगठनात्मक चारि बौद्धिक कला धार्मिक त्मक
त्रिक
अरबन ने सबसे पहले मूल्यों को दो भागों में बाँटा है - (१) जैविक और (२) अति जैविक । अतिजैविक मूल्य भी सामाजिक और आध्यात्मिक ऐसे दो प्रकार के हैं । इस प्रकार मूल्यों के तीन वर्ग बन जाते हैं
१. जैविक मूल्य - शारीरिक, आर्थिक और मनोरंजन के मूल्य जैविक मूल्य हैं। आर्थिक मूल्य मौलिक रूप से साधन-मूल्य हैं, साध्य नहीं । आर्थिक शुभ स्वतः मूल्यवान नहीं हैं, उनका मूल्य केवल शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्यों को अर्जित करने के साधन होने में है । सम्पत्ति स्वतः वाञ्छनीय नहीं है, बल्कि अन्य शुभों का साधन होने के कारण वाञ्छनीय है । सम्पत्ति एक साधन - मूल्य है, साध्य - मूल्य नहीं । शारीरिक मूल्य भी वैयक्तिक मूल्यों के साधक हैं । स्वास्थ्य और शक्ति से युक्त परिपुष्ट शरीर को व्यक्ति अच्छे जीवन के अन्य मूल्यों के अनुसरण में प्रयुक्त कर सकता है । क्रीड़ा स्वयं मूल्य है; किन्तु वह भी मुख्यतया साधक मूल्य है । उसका साध्य है शारीरिक स्वास्थ्य | मनोरंजन चित्तविक्षोभ को समाप्त करने का साधन है । क्रीड़ा और मनोरंजन उच्चतर
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