Book Title: Sramana 1992 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 119
________________ ( ११७ ) प्रस्तुत कृति महोपाध्याय चन्द्रप्रभसागर द्वारा विविध अवसरों पर दिये गये प्रवचनों का संकलन है । इस कृति को तीन खंडों में विभक्त किया गया है - ( १ ) आचार्य कुन्दकुन्द के सूत्रों पर (दि० ७-११ जुलाई, ९० ) दिये गये प्रवचन (२) आनन्दघन के अध्यात्म- पदों पर ( दि० १-५ अगस्त, ९० ) दिये गये प्रवचन और (३) श्रीमद राजचन्द्र के अध्यात्म - पदों पर (दि० ७ - १२ अगस्त, ९० ) दिये गये प्रवचन | " प्रस्तुत कृति के माध्यम से सामान्य पाठक भी जीवन की यथार्थता का बोध करते हुए तदनुरूप आचरण की प्रेरणा प्राप्त करेगा । धर्म प्रेमी जनों के लिए यह पुस्तक अत्यंत लाभप्रद सिद्ध होगी । कृति की शैली ओजपूर्ण और भाषा प्रवाहमान है । मुद्रण एवं साज-सज्जा आकर्षक है । X X X अरिहंते सरणं पवज्जामि - आचार्य जयन्तसेनसूरि, प्रका० : श्री राजेन्द्र प्रकाशन ट्रस्ट, रतनपोल, हाथीखाना अहमदाबाद; आकार : डिमाई; पृष्ठ सं० १०९० मूल्य : दस रु०; संस्करण : प्रथम १९९१ प्रस्तुत कृति के अध्यात्मप्रेमी लेखक आचार्य जयन्तसेनसूरि जी ने 'प्रार्थना' के गूढ़ार्थ को अपनी सहज-सुन्दर शैली में प्रस्तुत किया है । आपने 'जय वीयराय' सूत्र पर चिन्तनात्मक दृष्टिकोण से विवेचन कर इस कृति को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है । यह कृति धर्मप्रेमी जनों के लिए पठनीय और संग्रहणीय है । X X X छहढाला [ सटीक ] - ( गुजराती अनुवाद का हिन्दी अनुवाद ) अनुवादक : श्री मगनलाल जैन; प्रका० : श्री दि० जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ़ (सौराष्ट्र); आकार : क्राउन सोलह पेजी; पृष्ठ सं० : १८८; मूल्य : रु० ३ == ५०; संस्करण : बारहवाँ, वीर सं० २५१५ । कविवर दौलतरामजी कृत 'छहढाला' नामक ग्रन्थ में धर्म कां स्वरूप भली-भाँति समझाया गया है । सर्वप्रथम श्री रामजीभाई माणेकचंद दोशी के द्वारा इस कृति का गुजराती अनुवाद किया गया । प्रस्तुत कृति उस गुजराती अनुवाद का हिन्दी अनुवाद है । इसमें छह ढालों को अलग-अलग छह खण्डों में वर्णित किया गया है, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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