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( ११६ ) प्राचनसार : एक अध्ययन-मूल लेखक : डा० ए० एन० उपाध्ये (अंग्रेजी), हिन्दी अनुवादक : प्रो० लक्ष्मीचन्द जैन; प्रकाशक : श्री दिगम्बर जैन साहित्य-संस्कृति संरक्षण समिति, डी० ३०२, विवेक विहार, दिल्ली; आकार : डिमाई; पृष्ठ सं० : ५+१६६; मूल्य : ?; संस्करण : प्रथम १९९० ।
आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थ 'प्रवचनसार' का समीक्षात्मक अध्ययन डा० ए. एन. उपाध्ये ने अंग्रेजी भाषा में किया था । 'प्रवचनसार : एक अध्ययन' उपाध्ये जी की उस कृति का प्रो० लक्ष्मीचन्द्र जैन द्वारा किया गया हिन्दी रूपान्तरण है । प्रस्तुत ग्रन्थ को छः खण्डों में विभक्त किया गया है। प्रथम खण्ड में कुन्दकुन्द विषयक साहित्यिक, पुरातात्त्विक
और परम्परागत साक्ष्यों की समालोचना प्रस्तुत की गई है। दूसरे खण्ड में, पूर्ववर्ती एवं परवर्ती साक्ष्यों के आलोक में उनकी तिथिनिर्धारण का प्रयास किया गया है। तीसरा खण्ड आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य से सम्बन्धित है, जिसमें उनकी विषय-वस्तु के साथ-साथ संक्षिप्त समालोचना प्रस्तुत की गई है। चौथे खण्ड में प्रवचनसार के विविध पक्षों पर प्रकाश डालते हुए (जैन) साधु धर्म और (बौद्ध) भिक्षु धर्म का तुलनात्मक विवेचन किया गया है। पाँचवें खण्ड में प्रवचनसार की टीकाओं से सम्बन्धित तथ्य को प्रस्तुत किया गया है और अन्त में छठे खण्ड में प्रवचनसार की भाषा का व्याकरणीय अध्ययन किया गया है।
प्रस्तुत हिन्दी रूपान्तरण की भाषा सरल एवं प्रवाहमय है । ग्रन्थ का हिन्दी रूपान्तरण हो जाने से यह कृति हिन्दी पाठकों के लिए भी उपयोगी और संग्रहणीय बन गई है । प्रूफ संशोधन की सामान्य वटियों को छोड़कर मुद्रण एवं साज-सज्जा निर्दोष एवं आकर्षक है । ग्रन्थ का मूल्य अंकित नहीं हुआ है अतः क्रेताओं को असुविधा होगी।
महाजीवन की खोज-महोपाध्याय चन्द्रप्रभ सागर; प्रकाशक : श्री जितयशाश्री फाउंडेशन, कलकत्ता; पृष्ठ सं० १४०; मूल्य : १० रू०; आकार : डिमाई; संस्करण : प्रथम, १९९१ ।
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