Book Title: Sramana 1992 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 126
________________ ( १२४ ) प्रस्तुत कृति में दान, शील, तप, और भावना इन चार विषयों पर अभिधान राजेन्द्र कोष के आधार पर व्याख्याएँ एवं विवरण प्रस्तुत किया गया है। .. ७. कामोविजेता जगतोविजेता-लेखक और प्राप्ति स्थलपूर्वोक्त। प्रस्तुत कृति में कामवासना पर विजय पाने के सन्दर्भ में ११५ सूक्ति वचन संकलित किये गये हैं। चिन्तन की रश्मियाँ-लेखक (चिंतक) : मुनि श्री जयानन्द विजयजी, प्रकाशक : शा. बाबुलाल अमीचन्दजी बाफणा, माघ कालोनी भीनमाल (राज.)। प्रस्तुत कृति में लेखक ने जैन धर्म से सम्बन्धित विभिन्न विषयों पर अपने चिन्तन को अभिव्यक्त किया है। ९. प्रगति का प्रथम सोपान- लेखक : पूर्वोक्त; प्रकाशक शा. पुखराजजी मनरूपजी शाजी, पीपल चौक; भीनमाल (राजस्थान)। प्रस्तुत कृति में धर्म के स्वरूप के विवेचन के साथ-साथ श्रावक के ३५ मार्गानुसारी गुणों का वर्णन है। १०. मुनि जीवन नो मार्ग (गुजराती)- लेखक : पूर्वोक्त; प्रकाशक : श्री थराद जैन श्राविका संघ, थराद, वनासकांठा। प्रस्तुत कृति में लेखक ने जैन मुनि जीवन के सामान्य आचार नियमों पर विशेष रूप से प्रकाश डाला है । ११. मनुष्य की ऐसी जिन्दगानी-लेखकः मुनि अजितशेखरविजयः प्रकाशक : श्री जैन संघ गुन्टूर; पृष्ठ सं० १०५; मूल्य : रु० १५= ००। प्रस्तुत कृति में अनित्याणिशरीराणि, भगवान महावीर का उत्कृष्ट वैराग्य, अणु में विराट का दर्शन, स्वयं को सुधारोजगत को स्वीकारो, महानता के मार्गोपदेशक भगवान महावीर, धारी के स्वाद में, आदि विषयों पर मुनि श्री के विचारों का संकलन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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