Book Title: Sramana 1992 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 124
________________ ( १२२ ) स्पष्ट करने में पूरी तरह न्याय करती हैं और प्रवचन शैली में लिखी गई व्याख्याओं की तरह अर्थ में विषय को बोझिल नहीं बनाती है। यद्यपि पूर्व में लेखक के पद्यानुवाद स्वतंत्ररूप से मुद्रित हुए थे किन्तु इसमें मूल पाठ को उक्त हिन्दी पद्यानुवाद के साथ-साथ हिन्दी गद्यव्याख्या से समन्वित किया गया है । मुद्रण और साजसज्जा निर्दोष और आकर्षक है । ग्रन्थ पठनीय एवं संग्रहणीय है। ___ ग्रन्थ के प्रारम्भ में पं० जगन्मोहनलालजी की भमिका और नाथुराम जी का सम्पादकीय भी महत्त्वपूर्ण और पठनीय है उससे ग्रन्थ की महत्ता में वृद्धि हुई है। दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि-लेखक कामता प्रसाद जैन; प्रकाशक : श्री रघुवर दयाल जैन, स्मृति ग्रन्थमाला B. 2/22 सोपिंग सेन्टर सफदरगंज इनक्लेव नई देहली २९, पृ० १६२, मूल्य स्वाध्याय । प्रस्तुत कृति दो भागों में विभाजित है प्रथम भाग में दिगम्बरत्व की व्याख्या के साथ साथ हिन्दु, बौद्ध, ईसाई, इस्लाम आदि विभिन्न परम्पराओं में दिगम्बरत्व का क्या स्थान है इसकी चर्चा की गई है। साथ ही दिगम्बर मुनि के पर्यायवाची नामों की चर्चा भी दी गई है । इसमें इतिहासातीत काल में और ऐतिहासिक युग के विभिन्न कालखण्डों में हुए दिगम्बर मुनियों की भी सप्रमाण चर्चा की गई है। अतः प्रस्तुत कृति को दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनियों का एक ऐतिहासिक दस्तावेज कहा जा सकता है। मुद्रण निर्दोष एवं साजसज्जा आकर्षक है। कृति पठनीय और संग्रहणीय है। इस महत्वपूर्ण कृति के लिये लेखक और प्रकाशक धन्यवाद के पात्र हैं। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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