Book Title: Sramana 1992 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 123
________________ ( १२१ ) जिनेन्द्र-वाणी (प्रथम खण्ड)-लेखक मनोहर मुनि जी; सम्पादकः तिलकधर शास्त्री; आत्म-मनोहर जैनश्रुतपीठ, १५०, L, माडलटाउन, लुधियाना; प्रथम संस्करण १९९१; मूल्य १६० रु०; रायल ८. पृष्ठ सजिल्द २३, ६६४, ६४ । ___इसमें दशवैकालिक, आचारांग, सूत्रकृतांग, दशाश्रुतस्कन्ध, प्रश्नव्याकरण सूत्र, आवश्यक, नन्दी और उत्तराध्ययन सूत्र इन प्रमुख ८. जैन आगम ग्रन्थों का हिन्दी में सार प्रस्तुत किया गया है । इसमें दो परिशिष्ट भी हैं। प्रथम परिशिष्ट में इन ग्रन्थों में आयी प्रमुख कथाओं का परिचय दिया गया है। द्वितीय परिशिष्ट मे प्रमुख पारिभाषिक शब्दों का अर्थ स्पष्ट किया गया है । इस ग्रन्थ में विषय को मूल के अनुसार ही अध्ययनादि में वर्गीकृत कर प्रस्तुत किया गया है । हिन्दी भाषा में एक जिल्द में ८ प्रमुख आगमों की विषय वस्तु को उपलब्ध कराकर मुनिश्री ने स्तुत्य कार्य किया है । इस ग्रन्थ की एक कमी जैन विद्वानों को अवश्य खटकेगी। इसमें दशवैकालिक की भी विषय वस्तु को सुधर्मा और जम्बू स्वामी के संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है जबकि यह सर्वमान्य रूप से शय्यंभव की कृति है। ___ जो भी हो इस ग्रन्थ का कलेवर आकर्षक है, मुद्रण अत्यन्त सुन्दर है। आकार की दृष्टि से इसका मूल्य भी अत्यन्त कम है । ग्रन्थ संग्रहणीय है। समयसार वैभव-लेखक : आचार्य कुन्दकुन्द; भावानुवादक नाथुराम डोंगरीय; प्रकाशक : जैन साहित्य प्रकाशन, ७० एम० टी० क्लाथ मार्केट इन्दौर; डिमाई पृष्ठ ३०४; मूल्य रु० २१ मात्र । प्रस्तुत ग्रन्थ में आचार्य कुन्दकुन्द की अध्यात्म प्रधान महान कृति समयसार का मूल के साथ हिन्दी पद्यानुवाद और भावार्थ दिया गया है। अतः समयसार को हिन्दी माध्यम से समझने का सरलतम एवं सहज उपाय है। वैसे तो अब तक समयसार के अनेक संस्करण हिन्दी अनुवाद या व्याख्या के साथ प्रकाशित हो चुके हैं कुछ हिन्दी पद्यानुवाद भी निकले हैं। किन्तु प्रस्तुत कृति की विशेषता यह है कि उसकी व्याख्यायें न तो अति विस्तृत है और न अति संक्षिप्त । वे विषय को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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