Book Title: Sramana 1992 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 121
________________ ( ११९ ) पञ्चशती-लेखक आचार्य विद्यासागरजी संस्कृत टीका एवं हिन्दी रूपान्तरण-डा० पं० पन्नालाल साहित्याचार्य; प्रकाशकज्ञानगंगा ३० डिप्टीगंज सदरबाजार, दिल्ली ११०००६; पृ० ३५१+१४ आचार्य विद्यासागरजी न केवल वर्तमान दिगम्बर मुनि परम्परा के प्रबुद्ध आचार्य हैं, अपितु एक उच्चकोटि के साहित्य सर्जक भी हैं । वे हिन्दी के समान ही संस्कृत भाषा में भी साधिकार रचनाये लिखते हैं उनकी यह कृति इस तथ्य की साक्षी है कि जैन परम्परा में संस्कृत भाषा की रचना-धर्मिता आज भी जीवन्त है। प्रस्तुत कृति में आचार्य श्री के निम्न पाँच शतकों का संकलन है १. श्रमण शतक, २. निरंजन शतक, ३. भावना शतक ४. परिषह (कष्ट) जय शतक और ५. सुनीति शतक । विषयवस्तु की दृष्टि से पांचों शतक अध्यात्म, वैराग्य शौर नीति प्रधान है। दूसरे शब्दों में कृति शान्त-रस प्रधान है। सामान्यतया तो भाषा में प्रवाह और लालित्य है यद्यपि कहीं-कहीं अधिक बोझिल एवं दुरूह अवश्य हो गई है। इन सभी शतकों का पद्यानुवाद स्वयं आचार्य श्री ने किया है। वह उन लोगों के लिये विशेष रूचिकर एवं प्रबोधक होगा-जो संस्कृत भाषा नहीं समझ पाते हैं। हिन्दी पद्यानुवाद भावपूर्ण तथा अधिक सहज और बोध गम्य है। पं० पन्नालालजी की संस्कृत व्याख्या और हिन्दी अनुवाद भी विषय के साथ पूर्ण न्याय करता है और उसे स्पष्ट और बोधगम्य बना देता है। इस कृति के सृजन के लिये लेखक एवं व्याख्याकार दोनों ही अभिनन्दनीय है। मुद्रण एवं साज-सज्जा निर्दोष और कलापूर्ण है। ग्रन्थ पठनीय और संग्रहणीय है। --डा० सागरमल जैन जैन निर्देशिका-संपादक प्रदीप कुमार चोपड़ा; प्र० श्री जैन समाज, डी० १४२ ग्रीसम स्ट्रीट सेक्टर २-बी, विधान नगर, दुर्गापुर ७१।३२९।२ प्रथम संस्करण सितम्बर १९९१, पृ० ५८०२० : आकार इबलडिमाई पेपर बैक, मूल्य २५ रुपये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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