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साहित्य - सत्कार अनमोल रत्न-श्री तिलकचन्द जैन नारोवलिया; मूल्य धर्म प्रचार '१० सं० २५६; श्री आत्मानन्द जैन महासभा उत्तरी भारत, महावीर भवन, चावल बाजार, लुधियाना-१४१००८
यह पुस्तक - अनमोल रत्न --- परमपूज्य परमार क्षत्रियोद्धारक वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी महाराज के आशीर्वचन से युक्त है।
पुस्तक तीन भागों में विभक्त है। पहला भाग जगत और धर्म, मनुष्य, आत्मा, परमात्मा छः तत्त्व, कर्म लेश्या इत्यादि पर प्रकाश डालता है । दूसरे भाग में नवतत्व जीव-अजीव युगलिए, कल्पवृक्ष, देव काल-चक्र इत्यादि का वर्णन है, और तीसरे भाग में भगवत् भक्ति के - भजन, स्तुति, स्तवन, आरती है ।
यह पुस्तक वस्तुतः प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करने वाले धर्म प्रेमी बालक बालिकाओं के लिये अत्यन्त उपयोगी है। भाषा-शैली की दृष्टि से भी ठीक है।
धर्म शिक्षा के विद्यार्थियों के अतिरिक्त सामान्य तत्वान्वेषी श्रद्धाल जन के लिये भी पठनीय और संग्रहणीय है।
नवतत्व को जानकर उन पर श्रद्धा करना ही सम्यक् दर्शन है और सम्यक् दर्शन, सम्य ज्ञान एवं सम्यक् चारित्र के आत्मसात हो जाने से जीवन का सही निर्माण होता है और जीव मोक्ष की ओर अग्रसर होने के लिये सक्षम हो जाता है। यह पुस्तक सम्यक् ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम बन सकती है।
यह पुस्तक किसी भी पाठक का आत्म कल्याण कर सकती है। धर्म में श्रद्धा रखने वाले इसके पठन-पाठन से लाभान्वित होंगे तो लेखक का श्रम सफल होगा।
ऐसी ज्ञानवर्धक और जीवन को अन्धेरे से रोशनी की ओर ले जाने वाली इस ज्योति शलाका के लेखक श्री तिलकचन्द जी नारोवालिया निश्चित ही साधुवाद के पात्र हैं।।
-'विजयानन्द' से साभार
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