Book Title: Sramana 1992 01
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 116
________________ ( ११४ ) उपाध्याय मुनि श्री गुप्तिसागरजी । १२. ब्र. प्रभा जैन, संघस्थ आचार्य श्री विद्यासागरजी । १३. डा० टी० व्ही० जी० शास्त्री, निदेशक ( पुरातत्त्व ) कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर । संगोष्ठी का संचालन - संयोजन श्री अनुपम जैन, सम्पादक'अर्हत्वचन' ने किया । समागत सभी विद्वानों ने श्री देवकुमार सिंह कासलीवाल की इसे महत्वपूर्ण संरक्षण देने हेतु मुक्त कंठ से प्रशंसा की । आचार्य प्रवर श्री आनन्द ऋषि जी का महाप्रयाण २८ मार्च ९२ को श्रमण संघ के आचार्य, राष्ट्र संत श्री आनन्द ऋषि जी महाराज सा० का अहमदनगर (महाराष्ट्र) में ९२ वर्ष की अवस्था में समाधि पूर्वक महाप्रयाण हो गया । आपके महाप्रयाण से तप त्याग, संयम - साधना और भक्ति की महान ज्योति शान्त हो गई । आपका जीवन इस आदर्श का जीवन्त उदाहरण था कि संत का जीवन व्रत ही समर्पण है, वे मानवता को सुख-शान्ति, प्रेम, ज्ञान और सद्भाव मुक्त हस्त से बाँटते हैं, आदान नहीं प्रदान, ग्रहण नहीं समर्पण ही उनका स्वभाव है । तप, संयम और अध्यात्म के मनस्वी आचार्य भगवान् श्री आनन्द ऋषि जी ने समस्त जीवन तप, त्याग, संयम मे व्यतीत किया । सरलता, सौम्यता, उदारता, मन की पवित्रता, माधुर्य एव दयालुता के वे एक सच्चे मसीहा थे । वे श्रमण संस्कृति के संरक्षक सन्त रहे । आपने समूचे समाज को धार्मिक प्रकाश, उल्लास और विश्वास का आलम्बन दिया । आप श्री के समीप्य से श्रमण-श्रमणी तथा श्रावक-श्राविकाओं में परस्पर स्नेह, सौजन्यता एवं एकता की निर्मलधारा प्रवाहित होती रही है। आचार्य श्री कुशल उपदेशक एवं शासन प्रभावक सन्त थे उनका साहित्य प्रेरणादायक एवं जैन धर्म-दर्शन को समृद्ध करने वाला है । ऐसे मनीषी आचार्य के प्रयाण से जैन समाज ने वरिष्ठ तपस्वी सन्त खो दिया है। उन्हें आदर सहित विनयांजलि | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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