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चन्द्र कवेध्यक
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विभिन्न आगमों में चन्द्रवेध्यक के भिन्न-भिन्न नाम प्राप्त होते हैं, यथा-चंदावेज्झयं, चंदगवेझं, चंदाविज्झयं, चंदयवेझं, चंदगविज्झं और चंदगविज्झयं। इन नामों के क्रमशः कई संस्कृत रूपान्तरण बनते हैं, जैसे -चन्द्रावेध्यक, चन्द्रवेध्यक, चन्द्रकवेध्य, चन्द्रकवेध्यक, चन्द्राविध्यक, चन्द्रविद्या और चन्द्रकविध्यक। सही नाम निर्धारित कर पाना यद्यपि सहज नहीं है, किन्तु स्पष्ट है कि इन सभी नामों में अर्थ की दृष्टि से कोई भिन्नता नहीं है। जो कुछ भिन्नता है, वह मात्र शाब्दिक भिन्नता ही है। जैन विद्या के बहुश्रुत विद्वान् पद्मभूषण पं० दलपुखमाई मालत्रणिया के अनुसार इस ग्रंथ का 'चन्द्रकवेध्यक' नाम सर्वाधिक उपयुक्त है।" लेखक एवं रचनाकाल
चन्द्रकवेध्यक के लेखक के सम्बन्ध में कहीं पर भी कोई निर्देश उपलब्ध नहीं होता है। प्राप्त संकेतों के आधार पर मात्र यही कहा जा सकता है कि यह पांचवीं शताब्दी या उसके पूर्व के किसी स्थविर आचार्य की कृति है। लेखक के सन्दर्भ में किसी भी प्रकार का संकेत सूत्र उपलब्ध न हो पाने के कारण इस संबंध में कुछ भी कहना कठिन है।
चन्द्रकवेध्यक का उल्लेख नन्दीसुत्र एवं पाक्षिकसूत्र के अतिरिक्त नन्दीणि और निशीथचूर्णि में भी मिलता है। चूर्णियों का काल लगभग ६-७ वीं शताब्दी माना जाता है अतः चन्द्रकवेध्यक का रचनाकाल इससे पूर्व ही होना चाहिए। पूनः इस ग्रन्थ की उपलब्ध ताड़पत्रीय प्रतियाँ भी सिद्ध करती हैं कि यह प्राचीन होने के साथ-साथ बहुप्रचलित ग्रन्थ रहा है।
चन्द्रकवेध्यक के भाषायी स्वरूप पर विचार करने से ज्ञात होता है कि अन्य प्रकीर्णकों की अपेक्षा चन्द्रवेध्यक में उपलब्ध होने वाली गाथाओं का भाषायी स्वरूप अधिक प्राचीन प्रतीत होता है, किन्तु मात्र भाषायी स्वरूप के आधार पर भी इस ग्रन्थ की प्राचीनता को सिद्ध करना कठिन है।
१. व्यक्तिगत चर्चा के अनुसार ।
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