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श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१ सम्बन्धित था, कोटिकगण कोटिवर्ष से सम्बन्धित था, यद्यपि कुछ गण व्यक्तियों से भी सम्बन्धित थे। शाखाओं में कौशम्बिया, कोडम्बानी, चन्द्रनागरी, माध्यमिका, सौराष्ट्रिका, उच्चै गर आदि शाखाएं मुख्यतया नगरों से सम्बन्धित रही हैं। कुलों का सम्बन्ध मुख्य रूप से व्यक्तियों से रहा है। उच्चै गर शाखा का उत्पत्ति स्थल ऊंचेहरा ( म०प्र०)
प्रस्तुत आलेख में मात्र हम उच्चै गर शाखा के सन्दर्भ में ही चर्चा करेंगे । विचारणीय प्रश्न यह है कि वह उच्चैनगर कहाँ स्थित था, जिससे यह शाखा निकली थी। मुनि श्री कल्याण विजय जी और हीरालाल कापड़िया ने कनिंघम को आधार बनाते हुए, इस उच्चर्नागर शाखा का सम्बन्ध वर्तमान बुलन्दशहर से जोड़ने का प्रयत्न किया है। पं० सुखलाल जी ने भी तत्त्वार्थ की भूमिका में इसी का अनुसरण किया है । कनिंघम लिखते हैं कि "बरण या बारण यह नाम हिन्दू इतिहास में अज्ञात है। 'बरण' के चार सिक्के बुलन्दशहर से प्राप्त हुए हैं। मुसलमान लेखकों ने इसे बरण कहा है। मैं समझता हूँ कि यह वही जगह होगी और इसका नामकरण राजा अहिबरण के नाम के आधार पर हुआ होगा जो कि तोमर वंश से सम्बन्धित था और जिसने यह किला बनवाया था, किन्तु उसकी तिथि ज्ञात नहीं है। यह किला बहुत पुराना है और एक ऊँचे टीले पर बना हुआ है जिसके आधार पर हिन्दुओं द्वारा यह ऊँचा गांव या ऊँचा नगर कहा गया है और मुसलमानों ने उसे बुलन्दशहर कहा है।"१ यद्यपि कनिंघम ने कहीं भी इसका सम्बन्ध उच्चै गर शाखा से महीं बताया, किन्तु उनके द्वारा बुलन्दशहर का ऊँचानगर के रूप में उल्लेख होने से मुनि कल्याणविजय जी और कापड़िया जी ने तथा बाद में पं० सुखलालजी ने उच्चै गर शाखा को बुलन्दशहर से जोड़ने का प्रयास किया। प्रो० कापड़िया ने यद्यपि अपना कोई स्पष्ट अभिमत नहीं दिया है। वे लिखते हैं "इस शाखा का नामकरण किसी नगर के आधार पर ही हुआ होगा, किन्तु इसकी पहचान अपेक्षाकृतकठिन है; क्योंकि बहुत सारे ऐसे ग्राम और शहर हैं जिनके अन्त में 'नगर' नाम 1. Archaeological Survey of India, Vol. 14, p. 147
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