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अपभ्रश के के जैन पुराण और पुराणकार
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पउमचरिउ की हस्तलिखित प्रतियाँ श्री महावीर जी के जैन विद्या संस्थान'; भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इंस्टिट्यूट, पूना; आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर; दिगम्बर जैन गोदी का मन्दिर, साँगानेर, जयपुर तथा दिगम्बर जैन तेरापन्थी बड़ा मन्दिर जयपुर में उपलब्ध हैं।२
रिट्ठणेमिचरिउ कवि स्वयम्भू द्वारा महाभारत विषयक कथा को लेकर लिखा गया है। इस ग्रन्थ का मुख्य आधार कृष्ण और नेमिनाथ तीर्थङ्कर की कथा है। इसमें कुल ११२ सन्धियाँ (सर्ग) हैं तथा तीन काण्ड हैं--यादव, कुरु और युद्ध । इस ग्रन्थ की प्रथम ९९ सन्धियाँ स्वयम्भू कृत हैं और शेष उनके पुत्र त्रिभुवन स्वयम्भू कृत। यादब काण्ड में कृष्ण के जन्म, बालक्रीड़ा, विवाहादि का वर्णन; कुरु काण्ड में कौरव-पाण्डवों के जन्म, शिक्षण, परस्पर विरोध, द्यूत-क्रीड़ा तथा वनवास आदि का वर्णन तथा युद्ध-काण्ड में कौरव-पाण्डवों के बीच हुये युद्ध का रोचक वर्णन है। इस पुराण की रचना में कवि को ६ वर्ष ३ माह ११ दिन लगे थे।
रिट्ठणेमिचरिउ की हस्तलिखित प्रतियाँ बम्बई के ऐलक पन्ना लाल सरस्वती भवन; पूना के भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूट तथा सरस्वती भवन ब्यावर; जयपुर के दिगम्बर जैन छोटे दिवान जी मन्दिर और बधीचन्द्र दिगम्बर जैन मन्दिर" में उपलब्ध हैं।
अपभ्रंश की प्रबन्ध काव्य धारा में महाकवि स्वयम्भू देव के पश्चात् जिस महाकवि को सर्वाधिक गौरव एवं प्रसिद्धि मिली है वे हैं महाकवि पुष्पदन्त। आप ईसा की दशवीं शताब्दी के विद्वान् हैं। महाकवि पुष्पदन्त काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे इनके पिता का नाम केशव भट्ट और माता का नाम मुग्धा देवी था। आरम्भ में कवि १. जैन विद्या, स्वयंभू विशेषांक, पृ० ३० २. अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियाँ, पृ० १३९ ३. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० १५७ ४. जैन विद्या, स्वयम्भू विशेषांक, पृ० ३१ ५. अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियाँ, पृ० १७५-१७६ ६. जैन साहित्य और इतिहास, ३०१-३०२
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