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उपकेशगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
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गयी है । इस रचना की प्रशस्ति में भी वाचक विनयसमुद्र ने अपनी -गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है
रत्नप्रभसूरि
सिद्धसूरि T
हर्ष समुद्र
कक्कसूरि
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विनयसमुद्र [वि० सं० १६०२ / ई० सन् १५४६ में मृगावती चौपाई ]
के रचनाकार
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उनके गच्छीय वाचक मतिशेखर द्वारा वि० सं० १५३७ में रचित भयणरेहारास' की वि० सं० १५९१ / ई० सन् १५३४ में लिखी गयी प्रतिलिपि की प्रशस्ति में उपकेशगच्छीय कक्कसूरि, उनके शिष्य उपा० रत्नसमुद्र और उनकी शिष्या साध्वीरङ्गलक्ष्मी का उल्लेख प्राप्त होता है । इस प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि मयणरेहारास की यह प्रतिलिपि साध्वी रङ्गलक्ष्मी के पठनार्थ लिखी गयी थी ।
उक्त साक्ष्यों के आधार पर उपकेशगच्छीय ककुदाचार्य सन्तानीय मुनिजनों के आचार्य परम्परा की जो तालिका बनती है, वह इस 'प्रकार है - द्रष्टव्य, तालिका संख्या २
प्रकट पारसनाथी पट्टि, बहुरिमें मुनिजननँ थट्ठि ।
श्री सिद्धसूरि संपइ सुहकार, कक्कसूरि तसु शिष्य उदार ॥ ९५ ॥
तसु आदेशि हर्ष समुद्र, वाचक तेहने विनयसमुद्र ।
तिणि विरच्यो ओ चरित रसाल, सुणियो कविवर संघ विशाल ॥ ९६ ॥
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देसाई, मोहनलाल दलीचन्द -- पूर्वोक्त, पृष्ठ २८२-८३
१. देसाई, मोहनलाल दलीचन्द -- वही, पृष्ठ ११०
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