Book Title: Sramana 1991 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 123
________________ उपकेश गच्छ का संक्षिप्त इतिहास १२१ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित उपगच्छीय ककुदाचार्य संतानीय आचार्य परम्परा की उक्त तालिका में वि० सं० की ग्यारहवीं शती के मध्य हुए कक्कसूरि से लेकर विक्रम की सत्रहवीं शती के बीच हुए देवगुप्तसूरि तक के आचार्य हैं । इस तालिका में चौलुक्यनरेश कुमारपाल (वि० सं० ११९९-१२३० ) के समकालीन कक्कसूरि ( वि० सं० ११७२ - १२१२ प्रतिमालेख) और ककुदाचार्य संतानीय देवगुप्तसूरि (वि० सं० १३१४ - १३२३ प्रतिमालेख ) के मध्य लगभग १०० वर्षों का अन्तराल है । इस बीच कौन-कौन से आचार्य हुए, इस बारे में ग्रन्थप्रशस्तियों तथा प्रतिमालेखों से कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती, किन्तु उपकेशगच्छपट्टावली' (उपकेशगच्छ प्रबन्ध और नाभिनन्दनजिनोद्वारप्रबन्ध के आधार पर निर्मित) के विवरण के आधार पर इस अन्तराल को पूर्ण किया जा सकता है । उक्त पट्टावली के अनुसार कक्कसूरि ( कुमारपाल के समकालीन ) के पश्चात् देवगुप्तसूरि हुये । यद्यपि इस देवगुप्तसूरि का कोई प्रतिमालेख नहीं मिला है, तथापि वि० सं० १२४० के आस-पास उनका समय माना जा सकता है। पट्टावली के अनुसार देवगुप्तसूरि के पट्टधर सिद्धसूरि हुये। वि० सं० १२६१ के प्रतिमा लेख में उल्लि खित सिद्धसूरि संभवतः यही सिद्धसूरि हैं । पट्टावली में कहा गया है कि वि० सं० १२५२ में तुरुष्कों ने उपकेशपुर पर आक्रमण किया और यहाँ स्थित महावीर जिनालय को क्षतिग्रस्त कर दिया । गच्छनायक सिद्धसूरि इस समय पाटण में थे, बाद में वि० सं० १२५५ में उन्होंने इसका जीर्णोद्धार कराया ।" इसी पट्टावली के अनुसार सिद्धसूरि अपना पट्टधर नियुक्त करने के पूर्व ही स्वर्गस्थ हो गये, अतः श्रीसंघ ने वि० सं० १२७८ में उपाध्याय पदधारक मुनिवर्धमान को देवगुप्तसूरि के नाम से गच्छनायक बनाया । " १. देसाई, मोहनलाल दलीचंद -- जैनगुर्जरकवियो (प्रथम संस्करण) भाग ३ खंड २, पृष्ठ २२५४-२२७६ वही, पृष्ठ २२६५-२२६६ २. ३. वही, पृष्ठ २२६७ ४. वही, पृष्ठ २२६७ ५. वही, पृष्ठ २२६८ 5. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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