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श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१ उक्त प्रतिमालेखों के आधार पर द्विवंदणीकशाखा के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की एक तालिका बनती है, जो इस प्रकार है----
सिद्धसूरि [वि० सं० १३३४]
रत्नप्रभसूरि [वि० सं० १४४७]
देवगुप्तसूरि [वि० सं० १४७९-१५०८]
सिद्धसूरि वि० सं० १५१२-१५४७]
कक्कसूरि [वि० सं० १५५२-१५८९]
देवगुप्तसूरि [वि० सं० १५६७-१५९९] विवंदणीक / द्विवंदणीकगच्छीय कक्कसूरि के प्रशिष्य एवं देवगुप्तसूरि के शिष्य सिंहकुल ने वि० सं० १४८५ (एक अन्य प्रति में वि० सं० १५५०) में मुनिपतिचरित्र की रचना की ।' ___अभिलेखीयसाक्ष्यों के आधार पर निर्मित द्विवंदणीकशाखा के मुनिजनों की उक्त तालिका में देवगुप्तसूरि नामक दो आचार्यों का उल्लेख है । मुनिपतिचरित्र की दो हस्तप्रतियों में भी इसके रचनाकाल १. देसाई, मोहनलाल दलीचन्द-जैनगूर्जकवियो-भाग १, (नवीन संस्करण,
बम्बई १९८५) पृष्ठ १९४-१९६ ।
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