Book Title: Sramana 1991 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 192
________________ साहित्य-सत्कार तत्त्वार्थ सूत्र :-विवेचनकर्ता : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री; 'प्रकाशक : श्री गणेशवर्णी दिगम्बर जैन (शोध ) संस्थान नरिया, वाराणसी; पृष्ठ सं० : ४६२-३१४; मूल्य : ५० रु० (पुस्त० संस्करण), ३०.०० (साधारण संस्करण); संस्करण : द्वितीय १९९१; डिमाई। तत्त्वार्थ सूत्र जैन परम्परा का सर्वमान्य ग्रन्थ है श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराएँ इसे समान रूप से मान्य करती हैं यद्यपि दोनों परम्पराओं के मूल पाठ में किञ्चित् अन्तर भी है। इस ग्रन्थ पर दोनों परम्पराओं में संस्कृत में अनेक टीकाएँ लिखी गईं। हिन्दी भाषा में श्वेताम्ब र परम्परा में सर्वप्रथम पं० सुखलाल जी ने इसकी टीका लिखी थी। पं० फलचन्द्र जी सिद्धान्त शास्त्री ने दिग० परम्परा के मूलपाठ को समक्ष रखकर पं० सुखलाल जी की हिन्दी टीका को आधार बनाते हुए दिग० परम्परा की दृष्टि से तत्त्वार्थ सूत्र की यह हिन्दी विवेचना लिखी है (देखें-आत्मनिवेदन)। समालोच्य यह कृति उनके इस हिन्दी विवेचन का द्वितीय संस्करण है। पं० फूलचन्द्रजी इस ग्रन्थ की विस्तृत प्रस्तावना लिखने की भी इच्छा रखते थे किन्तु बृद्धावस्था के कारण वे इसे पूर्ण नहीं कर सके अतः प्रथम संस्करण की प्रस्तावना को लेकर ही इस द्वितीय संस्करण का प्रकाशन करना पड़ा। फिर भी यदि सर्वार्थसिद्धि की उनकी प्रस्तावना को आधार बनाकर इस प्रस्तावना को विकसित किया जाता तो यह प्रस्तावना अधिक उपयोगी बन सकती थी। जिस प्रकार पं० सुखलाल जी का हिन्दी विवेचन ग्रन्थ के हार्द को स्पष्ट करने में अति सफल रहा है उसी प्रकार पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री का विवेचन भी दिग० परम्परा की दृष्टि से ग्रन्थ के हार्द को स्पष्ट करने में सफल माना जा सकता है। जैन परम्परा के तत्त्वज्ञान और आचार को समझने के लिए तत्त्वार्थ सूत्र अन्यतम ग्रन्थ माना जा सकता है। ग्रन्थ की प्रस्तावना में तत्त्वार्थ सूत्र और उसके भाष्य के कर्ता आदि को लेकर कुछ प्रश्न उठाये गये हैं। यद्यपि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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