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उपकेशगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
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देवगुप्तसूरि [वि० सं० १३८९-१४२७] प्रतिमालेख सिद्धसूरि [वि० सं० १४३२-१४४५] प्रतिमालेख कक्कसूरि [वि० सं० १४६६-१४७१] प्रतिमालेख देवगुप्तसूरि [वि० सं० १४७१-१४९९] प्रतिमालेख
विनयप्रभ उपाध्याय
सिद्धसूरि [वि० सं० १४७३] [वि० सं० १४७९/ ई० सन्
प्रतिमालेख १४२३ की उत्तराध्यनसुखवोधा- कक्कसूरि [वि० सं० १५०२-१५०८] वृत्ति की प्रतिलिपि में
प्रतिमालेख उल्लिखित]
देवगुप्तसूरि [वि० सं० १५०३-१५०७]
प्रतिमालेख सिद्धसूरि [वि० सं० १५२५-१५४०]
प्रतिमालेख कक्कसूरि [वि० सं० १५३७-१५४९].
प्रतिमा लेख धर्महंस
धर्मरुचि [वि० सं० १५६१ / ई० ___ सन् १५०५ में अजापुत्रचौपाई के
रचनाकार]. उपकेशगच्छीय सिद्धाचार्यसंतानीय शाखा के आचार्यों की परम्परा की पूर्वोक्त तालिका संख्या ४ को अविभाजित उपकेशगच्छ की पूर्व प्रदर्शित तालिका-१ से समायोजिता तो किया जा सकता है, किन्तु दोनों के मध्य लगभग १०० वर्षों का जो अन्तराल है, उसे पूरा करने में साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों से कोई सहायता प्राप्त नहीं होती । उक्त दोनों तालिकाओं के समायोजन से गुरु-शिष्य परम्परा की जो नवीन तालिका निर्मित होती है, वह इस प्रकार है--
द्रष्टव्य-तालिका-५.
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