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________________ उपकेशगच्छ का संक्षिप्त इतिहास ११७ गयी है । इस रचना की प्रशस्ति में भी वाचक विनयसमुद्र ने अपनी -गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है रत्नप्रभसूरि सिद्धसूरि T हर्ष समुद्र कक्कसूरि 1 विनयसमुद्र [वि० सं० १६०२ / ई० सन् १५४६ में मृगावती चौपाई ] के रचनाकार 11 उनके गच्छीय वाचक मतिशेखर द्वारा वि० सं० १५३७ में रचित भयणरेहारास' की वि० सं० १५९१ / ई० सन् १५३४ में लिखी गयी प्रतिलिपि की प्रशस्ति में उपकेशगच्छीय कक्कसूरि, उनके शिष्य उपा० रत्नसमुद्र और उनकी शिष्या साध्वीरङ्गलक्ष्मी का उल्लेख प्राप्त होता है । इस प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि मयणरेहारास की यह प्रतिलिपि साध्वी रङ्गलक्ष्मी के पठनार्थ लिखी गयी थी । उक्त साक्ष्यों के आधार पर उपकेशगच्छीय ककुदाचार्य सन्तानीय मुनिजनों के आचार्य परम्परा की जो तालिका बनती है, वह इस 'प्रकार है - द्रष्टव्य, तालिका संख्या २ प्रकट पारसनाथी पट्टि, बहुरिमें मुनिजननँ थट्ठि । श्री सिद्धसूरि संपइ सुहकार, कक्कसूरि तसु शिष्य उदार ॥ ९५ ॥ तसु आदेशि हर्ष समुद्र, वाचक तेहने विनयसमुद्र । तिणि विरच्यो ओ चरित रसाल, सुणियो कविवर संघ विशाल ॥ ९६ ॥ Jain Education International देसाई, मोहनलाल दलीचन्द -- पूर्वोक्त, पृष्ठ २८२-८३ १. देसाई, मोहनलाल दलीचन्द -- वही, पृष्ठ ११० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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