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________________ ११६ . श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१ १५८३ में रची गयी है।' अद्यावधि इनकी २० रचनायें उपलब्ध हैं जो. वि० सं० १५८३ से वि० सं० १६१४ के मध्य रची गयी हैं। आरामशोभाचौपाई की प्रशस्ति में रचनाकार की जो गुरु-परम्परा प्राप्त होती है, वह इस प्रकार है रत्नप्रभसूरि सिद्धसूरि हर्षसमुद्र विनयसमुद्र [वि० सं० १५८३/ई० सन् १५२६ ___आरामशोभाचौपाई के रचनाकार] मृगावतीचौपाई यह उपकेशगच्छीय वाचक विनयसमुद्र की दूसरी महत्त्वपूर्ण कृति है, जो वि० सं० १६०२/ई० सन् १५४६ में रची १. करि संलेहण साध्यां काज, लहिसे मुक्तिपुरीनउ राज । उव असगच्छ गुणगणे गरिठ्ठ, श्री रयणप्पहसूरि वरिठ्ठ ॥४५॥ तसु अनुक्रमि संपइ सिद्धसूरि, तासु सीस वाचक गुणभूरि । हरषसमुद्र नामि गुणसार, तासु सीसइ कहउ विचार ॥४६॥ विनयसमुद्र वाचक इम भणइं, धन्य ति नरनारी जे सुणई । तेहनी सीनई सधली आस, पुणि ते लहिले शिवपुरिवास ॥४७॥ अ आरामसोभा चउपइ, भावतणे उपरि मई कही, वरस व्यासिये मागसिरि मासि, बीकानयरिहि मन उल्लासि-॥४८ देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ २८१ २. कर गयणंगण रस शशि वर्षे, वर वैशाख मास मन हर्षे । पञ्चमी सोमवार चउसाल, चउपइबन्ध रची सुविशाल ॥९३॥ वीका नयरहि वीर जिणंद, तासु पसायई परमाणंद । श्री उवअसगच्छ सिणगार, रयणपह गिरुओ गणधार ॥९४४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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