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उपकेशगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
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उपकेशगच्छ की द्वितीय पट्टावली में भी पार्श्वनाथ की परम्परा से उपकेशगच्छ की उत्पत्ति, वीर सम्वत् ८४ में आचार्यरत्नप्रभसूरि द्वारा उपकेशपुर और कोरंटपुर में एक ही तिथि में जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठापना का परम्परागत विवरण प्राप्त होता है । इस पट्टावली में वि० सं० १२६६ में उपकेशगच्छ से द्विवंदनीकगच्छ का प्रादुर्भाव, इसके पश्चात् वि० सं० १३०८ में खरातपा शाखा का उद्भव एवं वि० सं० १४९८ में देवगुप्तसूरि के शिष्य से खादिरी शाखा के उदय की बात कही गयी है। द्विवंदनीकगच्छ के उद्भव की बात तो अन्य पट्टावलियों से भी ज्ञात होती है किन्तु खरातपा शाखा और खादिरी शाखा के उद्भव के सम्बन्ध में अन्य किसी पट्टावली से कोई सूचना प्राप्त नहीं होती। चूंकि अभिलेखीय साक्ष्यों से उक्त शाखाओं का अस्तित्व सिद्ध है, अतः इस पट्टावली का उक्त विवरण अत्यन्तमहत्त्वपूर्ण है।
उपकेशगच्छ की तृतीय पट्टावली में भगवान् पार्श्वनाथ के पट्टधर शुभदत्त से लेकर सिद्धसूरि वि० सं० १९३५ तक लगभग २५०० वर्षों की अवधि में हुए ८४ आचार्यों के नाम, उनके काल एवं उनके समय की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का संक्षिप्त विवरण है। अनुश्रुतिपरक विवरणों से परिपूर्ण एवं अर्वाचीन होने के कारण उपकेशगच्छ के प्राचीन इतिहास के अध्ययन में उक्त पट्टावली प्रामाणिक नहीं कही जा सकती है।
अभिलेखीयसाक्ष्य-उपकेशगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध हुए हैं। ये लेख वि० सं० १०११ से वि० सं० १९१८ तक के हैं। इन लेखों में विक्रम की ग्यारहवीं शती के प्रारम्भ से लेकर विक्रम की १३वीं शती के अन्त तक केवल १८ लेख ही उपलब्ध हुए हैं, इनका विवरण इस प्रकार है
उपकेशगच्छ के प्रारम्भिक प्रतिमा लेखों का विवरण संवत् तिथि/मिति आचार्य नाम १०११ चैत्र सुदि ६ कक्काचार्य [१ प्रतिमालेख] १०११
देवसूरि
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