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अपभ्रश के जैन पुराण और पुराणकार
सोलहवीं शताब्दी में दूसरे तीर्थङ्कर के चरित को लेकर विजयसिंह द्वारा अजितनाथ पुराण की रचना की गयी। कवि विजय सिंह ने अजित पुराण की प्रशस्ति में अपना परिचय दिया है। कवि के पिता का नाम दिल्हण और माता का नाम राजमति था। कवि ने अपनी गुरु परम्परा का निर्देश नहीं किया है। अजित पुराण की समाप्ति वि०सं० १५०५ कार्तिक पूर्णिमा के दिन की है। इस ग्रन्थ में १० सन्धियाँ हैं। इस ग्रंथ की रचना कवि ने महाभव्य कामराज के पुत्र पण्डित देवपति की प्रेरणा से की है।
इस पुराण की हस्तलिखित प्रतियाँ श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, जयपुर तथा दिगम्बर जैन शास्त्र भण्डार, मौजमाबाद (जयपुर) में उपलब्ध हैं।
सोलहवीं शताब्दी में ही महिन्दु कृत शान्तिनाथ पुराण का उल्लेख जैन साहित्य में मिलता है। कवि महिन्दु या 'महीचन्द्र' इल्लराज के पुत्र हैं। इससे अधिक इनके परिचय के सम्बन्ध में कुछ भी प्राप्त नहीं होता है । अपने ग्रन्थ शान्तिनाथ पुराण की प्रशस्ति में कवि ने योगिनपुर ( दिल्ली ) का सामान्य परिचय कराते हुए काष्ठसंघ के माथुरगच्छ और पुष्करगण के तीन भट्टारकों का नामोल्लेख किया है-यशःकीर्ति, मलयकीर्ति और गुणभद्रसूरि । भट्टारकों की उपयुक्त परम्परा अंकन से यह ध्वनित होता है कि कवि महीन्दु के गुरु काष्ठसंघ माथुरगच्छ और पुष्कर गण के आचार्य ही रहे हैं। तथा कवि का सम्बन्ध भी उक्त भट्टारक-परम्परा के साथ है। कवि ने ग्रन्थ की रचना काल स्वयं ही बतलाया है कि इस ग्रन्थ की रचना वि० सं० १५८७ मुगल बादशाह बाबर के राज्यकाल में समाप्त हई । शान्तिनाथ पुराण की कथावस्तु १३ परिच्छेदों में विभक्त है। पद्य-प्रमाण ५००० के लगभग हैं । १. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ४, पृ० २२७ २. वही, पृ० २२८ ३. अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियाँ, पृ० ११३-११४ ४. वही, पृ० १९० ५. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ४, पृ० २२५ ६. वही, पृ० २२६
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