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श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१
और कौरवों के साथ श्री कृष्ण का चरित भी अंकित किया गया है। रचना की भाषाशैली प्रौढ़ है । इस ग्रन्थ की रचना मुवारिक शाह के राज्यकाल में साधु वील्हा के पुत्र हेमराज की प्रेरणा से की गयी है।
इस पुराण की हस्तलिखित प्रतियाँ जयपुर के आमेर शास्त्र भंडार, दिल्ली के पंचायती दिगम्बर जैन मन्दिर, ब्यावर के दिगम्बर जैन ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन तथा दौसा के दिगम्बर जैन तेरहपन्थी मन्दिर में उपलब्ध हैं ।
हरिवंश पुराण और पाण्डव पुराण के रचयिता भट्टारक यशःकीर्ति साधु थे और साधु होने की वजह से स्थान-स्थान पर बिहार करते रहते थे । इन दोनों ग्रंथों की रचना इन्होंने नागौर और उदयपुर में की थी।
पन्द्रहवीं शताब्दी में ही अपभ्रंश भाषा में रचित एक अन्य हरिवंश पुराण जैन साहित्य में उपलब्ध होता है। यह पुराण आचार्य श्रुतकीर्ति द्वारा रचित है। इसमें ४४ सन्धियों (सर्ग) में कौरव-पाण्डव आदि का वर्णन किया गया है। डा० हीरालाल जैन के अनुसार यह पुराण वि० सं० १५५३ में पूर्ण हुआ। लेकिन डा० विद्याधर जोहरापुरकर के अनुसार भट्टारक त्रिभुवन कीर्ति के शिष्य श्रुतकीर्ति ने सं० १५५२ में ग्यासुद्दीन के राज्य काल में जेरहट में हरिवंश पुराण लिखा । डा० नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार जेहरट नगर के नेमिनाथ चैत्यालय में हरिवंश पुराण की रचना वि० सं० १५५२ माघ कृष्ण पञ्चमी सोमवार के दिन हस्त नक्षत्र में की थी। ___ श्रुतकीति कृत इस हरिवंश पुराण की हस्तलिखित प्रतियाँ आमेर शास्त्र भण्डार जयपुर, जैन सिद्धान्त भवन, आरा, और दिगम्बर जैन ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन, ब्यावर में उपलब्ध हैं। १. तीर्थकर महावीर ओर उनकी आचार्य परम्परा, भाग ३, पृ० ४११ २. अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियाँ, पृ० १४५-१४६ ३. जैन विद्या नवम्बर ८५, पृ० ३ ( प्रास्ताविक से उद्धृत ) ४. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० १५५ ५. भट्टारक सम्प्रदय, पृ० लेखांक ५२३ ६. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ३, पृ० ४३१, ७. अपभ्रंश भाषा और साहित्न की शोध प्रवृत्तियाँ, पृ० १७६.
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