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श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१ उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति'- इस ग्रन्थ की एक प्रति शान्तिनाथ जैन ग्रंथ भण्डार, खंभात में संरक्षित है। इसे उपकेशगच्छीय ककुदाचार्यसंतानीय देवगुप्तसूरि के शिष्य सिद्धसूरि के उपदेश से वि० सं० १३५२/ई० सन् १२९५ में श्रावक गोसल के पुत्र सङ्घपति आशाधर ने लिपिबद्ध कराया :
देवगुप्तसूरि सिद्धसूरि [वि० सं० १३५२/ई० सन् १२९५
___ में इनके उपदेश से उत्तराध्ययनसूत्र
सुखबोधावृत्ति की प्रतिलिपि की गयी] नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध अपरनाम शत्रुञ्जयतीर्थोदधारप्रबन्ध शत्रुञ्जयतीर्थोद्धारक समरसिंह के गुरु उपकेशगच्छीय सिद्धसूरि के पट्टधर कक्कसूरि ने वि० सं० १३९३ में कजरोटपुर में उक्त कृति की रचना की। इसमें समरसिंह द्वारा शत्रुञ्जय पर कराये गये जीर्णोद्धार एवं उपकेशगच्छ के सम्बन्ध में विवरण प्राप्त होता है। श्री लालचन्द भगवानदास गांधी ने अपने विद्वत्तापूर्ण लेख में कक्कसूरि की गुरु १. सिद्धसूरिगुरोराज्ञां बिभ्राणः शिरसा भृशम् ।
करेष्वग्नीन्दु १३५२ वर्षेऽत्र व्यलीलिखदवाचयत् ॥२८॥ श्रीदेवगुप्तसूरीणां शिष्यः समुदि संसदि । पासमूर्तिस्तदादेशात् किमप्यर्थमभाषत् ॥३१॥ .............."जस्येह पुष्पदन्तौ स्थिराविमौ । गुरुभिर्वाच्यमानोऽयं तावन्नन्दतु पुस्तकः ॥३२॥
संवत् १३५२ वर्षे वर्षाकाले श्रीउपकेशगच्छे ककुदाचार्यसंताने श्रीसिद्धसूरिप्रतिपत्तौ सा० देसलसन्ताने सा० गोसलात्मजसंघपति--
आशाधरेण श्रीउत्तराध्ययनवृत्तिः ससूत्रा कारिता ॥ मुनि पुण्यविजय--कैटलाग ऑफ पामलीफ मैन्युस्क्रिप्ट्स इन दि शान्तिनाथ
जैन भण्डार, कैम्बे (बड़ौदा १९६२-६६) पृ० १२०-१२३ २. गान्धी, लालचन्द भगवानदास-ऐतिहासिकजैनलेखो [बड़ोदरा, १९६३ ई०] पृष्ठ ५११-५९१
देसाई, मोहनलाल दलीचन्द--जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ४२६-२७
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