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श्रमण, जुलाई-दिसम्बर, १९९१ जैसा व्यक्ति भी मोहमुग्ध होकर कीचड़ में पड़ा है और चिन्तामणि रत्न जैसा मानव-भव खो रहा है ।
इस प्रकार हंसी और काक के स्वरूपों को देखकर प्रतिबोध प्राप्त शुकराज ने संसार त्यागकर चारित्र स्वीकार कर लिया। उसने लाख वर्ष तपस्या करके स्वर्ग-विमान में अवतार लिया। कवि सहजसुन्दर वाचक कहते हैं कि जो शुकराज का चारित्र पढ़ेगा, सुनेगा वह सुख प्राप्त करेगा।
जिस सूडा सहेली रास का कथासार ऊपर दिया गया है, वह १६० ( अन्य प्रति में १६७ ) पद्यों की रचना है। सोलहवीं शती में लिखित इस प्रेमकथा की परम्परा प्राचीन प्रतीत होती है। कवि ने किस ग्रन्थ के आधार से ली या मौखिक लोककथा को अपनाया वह अन्वेषणीय है।
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