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उच्चैर्नागर शाखा के उत्पत्ति-स्थल
एवं उमास्वाति के जन्म-स्थल की पहचान
-प्रो० सागरमल जैन तत्त्वार्थसूत्र के प्रणेता उमास्वाति ने तत्त्वार्थ-भाष्य की अन्तिम प्रशस्ति में अपने को उच्चैर्नागर शाखा का कहा है तथा अपना जन्मस्थान न्यग्रोधिका बताया है। प्रस्तुत आलेख का मुख्य उद्देश्य उच्चर्नागर शाखा के उत्पत्ति-स्थल एवं उमास्वाति के जन्म-स्थल का अभिज्ञान ( पहचान ) करना है। उच्चैर्नागर शाखा का उल्लेख न केवल तत्त्वार्थ-भाष्य' में उपलब्ध होता है, अपितु श्वेताम्बर परम्परा में मान्य कल्पसूत्र की स्थविरावली में तथा मथुरा के अभिलेखों में भी उपलब्ध होता है। कल्पसूत्र स्थविरावली के अनुसार उच्चैर्नागर शाखा कोटिकगण की एक शाखा थी। मथुरा के २० अभिलेखों में कोटिकगण तथा नौ अभिलेखों में उच्चै गर शाखा का उल्लेख मिलता है । कोटिकगण कोटिवर्ष के निवासी आर्य सुस्थित से निकला था । कोटिवर्ष की पहचान पुरातत्वविदों ने उत्तर बंगाल के फरीदपुर से की है। इसी कोटिकगण से आर्य शान्ति श्रेणिक से उच्चैर्नागर शाखा के निकलने का उल्लेख है। कल्पसूत्र के गण, कुल और शाखाओं का अध्ययन करने पर एक बात स्पष्ट हो जाती है कि गणों का और शाखाओं का सम्बन्ध व्यक्तियों की अपेक्षा मुख्यतया स्थानों या नगरों से अधिक रहा है जैसे-वारणगण, वारणावर्त से १. तत्त्वार्थभाष्य अन्तिम-प्रशस्ति, श्लोक सं० ३, ५ २. कल्पसूत्र, स्थविराली २१८ ३. जैन शिलालेख संग्रह, भाग-२ लेखक्रमांक, १०, २०, २२, २३, ३१,
३५, ३६, ५०, ६४, ७१ ४. कल्पसूत्र स्थविरावली, २१६ ५. ऐतिहासिक स्थानावली (ले० विजयेन्द्र कुमार माथुर) पृ० सं० २३१
निदेशक, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी-५
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