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सूडा-सहेली की प्रेम कथा
११-प्रसन्नचन्द्र राजर्षि रास', सं० १६४८ (?) १२-इरियावही रास, गा० ७५, सं० १५७१ (?) १३-गर्भवेली, गा० ४४ १४-सरस्वती छन्द, गा० १४ १५-शालिभद्र सज्झाय, गा० १७ १६-आदिनाथ शत्रुञ्जय स्तवन १७-आँख-कान संवाद
मुनिराज श्री पुण्यविजय के संग्रह से प्राप्त एक गुटके में सूडा सहेली रास उपलब्ध हुआ है जिसका हिन्दीसार यहाँ दिया जा रहा है :
सूडा-सहेलीरास का सार सरस्वती, वीर जिनेश्वर और गौतम स्वामी को नमस्कार करके गुर्वाज्ञा प्राप्त कर कवि सहजसुन्दर सूडा और सहेली की प्रेम-कथा पद्य में लिखता है। इसी जम्बूद्वीप की उज्जयनी नगरी में मकरकेतु नामक राजा राज्य करता था। जिसकी प्रिया सुलोचना की कुक्षि से कन्यारत्न का जन्म हुआ। वह रम्भा के सदृश लावण्यवती थी। बड़ी होने पर सरस्वती की भांति विद्या, गुण, कला में प्रवीण हो गई, उसका नाम सहेली था।
तरुणावस्था प्राप्त सहेली कुमारी ने एक बार रात्रि के समय स्वप्न में देखा कि वह विदेश गई है और विद्याधर नगरी में पहुँची। वहाँ के राजा मदन भीम के पुत्र शुकराज विद्याधर के साथ क्रीडा की, जो अत्यन्त सुन्दर और गुणसम्पन्न था। इसके बाद वह तुरन्त जग गई और उसके गुणों को अश्रुपूर्ण नेत्रों से स्मरण करने लगी। उसे अपने जगने से स्वामी को खो देने का पछतावा होने लगा।
सहेली कल्पना करने लगी-सुख भर नींद में सोई थी कि परदेशी प्रियतम आये और मैं उनसे गले लगकर मिली। हृदय-कमल में प्रियतम भ्रमर एकांत में मिला पर सूर्योदय होते ही उड़ गया । १. यह रचना यदि सहजसुन्दर की है तो रचना-काल पूर्ववर्ती होगा। प्रति को
देखकर निर्णय करना आवश्यक है।
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