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सूडा-सहेली की प्रेम कथा
३१ करना अशक्य है एवं लोगों से तुम्हारी चतुराई की प्रशंसा सुनकर यहाँ आ गया हूँ।
उसने शुक का स्वागत करते हुए कहा-आप यहाँ चित्रशाला में सुख से रहें, दाडिमादि फल भोजन करें। उसने एक सोने का पिंजड़ा मँगाकर रखा। शुकराज कौतूहल पूर्वक फलाहार करता हुआ उसमें रहने लगा। वह नाना श्लोक-सुभाषितों से सहेली का मनोरंजन करता । शुक के वचनों से उसको अपने स्वप्न के सत्य की प्रतीति हो गई और शुकराज के प्रति विशेष प्रीति जागृत हुई। वह शुक की विशेष भक्ति करती और शुकराज के गुणस्मरण, ध्यान में विशेष रत हो गई। विरहाकुल सहेली का शरीर सूख गया और हाथों की चूड़ियाँ निकल कर गिरने लगीं। उसके अश्रु प्रवाह को देखकर शुक के पूछने पर उसने अपनी अन्तर्व्यथा कहते हुए कहा-कुमार शुकराज के बिना मेरी एक-एक घड़ी छः मास की तरह व्यतीत होती है, उनसे मिलन कैसे हो? तुम उनके सहदेशी हो, अतः मिलने का उपाय बताकर मेरा दुःख दूर करो। शुक ने कहा अभी तो तुमने उसे देखा तक नहीं है, व्यर्थ का विलाप करती हो। सहेली ने कहा--मैंने स्वप्न में उन्हें देखा है, तुम कठोर न बनकर उनसे मिलाओ। उनके और मेरे बीच वन-पर्वत, नदी-नालों का दीर्घ अन्तर है पर प्रीति में लाखों योजन का अन्तर कभी बाधक नहीं होता। चातक और मेघ; सूर्य और कमल; चन्द्र और कुमुदिनी में कितनी दूरी है, परन्तु प्रीति में दूरी क्या ? आँख और कान के बीच चार अंगुल की ही दूरी है पर कभी एक दूसरे को नहीं देखते ।
शुक ने कहा- और भी लाखों पुरुष-रत्न हैं, तुम्हें तुम्हारी जोड़ी का सद्गुणी लाकर मिला दूं। सहेली ने कहा-रे पागल ! ऐसी सीख मुझे मत दो इस भव में तो मेरा वही स्वामी है, अन्यथा अग्नि की शरण है। मेरे समक्ष उनके सिवा दूसरे गुणों की बात ही न निकालना फिर कभी ऐसी अनर्गल बात कही तो मैं प्राणों का त्याग कर तुम्हें स्त्री-हत्या का श्राप दे दूंगी।
शुक ने सोने की भाँति सहेली की कसौटी करके उसके प्रेम को सच्चा पाया। अंजली में बँधा जल कितनी देर रह सकता है ? फूल का परिमल कभी गोप्य रह सकता है ? वह सहेली को कभी हँस और
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