Book Title: Sirisiriwal Kaha Part 02
Author(s): Ratnashekharsuri, Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 194
________________ वालकहा सिरिसिरि // 212 // सालिपमुहेहिं धन्नेहिं पंचवन्नेहिं मंतपूएहिं / रइऊण सिद्धचक्कं संपुन्नं चित्तचुन्जकरं // 1983 // तत्थ य अरिहंताइसु नवसु पएसु ससप्पिखंडाई। नालियरगोलयाई सामन्नेणं ठविखंति // 1984 // तेण पुणो नरवडणा मयणासहिएण वरविवेएण / ताइंपि गोलयाई विसेससहियाई ठवियाई // 1185 // वेदिका यत्र तत्रिवेदिकं विस्तीर्ण वरकुट्टिमेन-प्रधानबद्धभूम्या धवलं-उज्ज्वलं पुनर्नवरङ्गैः-नवीनरमकद्रव्यैः IR कृतानि चित्राणि-आलेख्यानि यत्र तत्तथाभूतं पीठं कृत्वा // 1182 // मन्त्रैः पूतानि-पवित्राणि मन्त्रपूतानि तैः पञ्चवर्णैः शालिप्रमुखर्धान्यैः चित्तचोजकरं सम्पूर्ण सिद्धचक्रं रचयित्वेति सम्बन्धः, पश्यतां जनानां चित्ते चोज-आश्चर्य करोतीति विग्रहः // 1183 // तत्र-सिद्धचक्रेऽहंदादिषु नवसु पदेषु सामान्येन सर्पिः-घृतं खण्डश्च-मधुधूलिस्ताभ्यां सहितानि भूतानि ससर्पिःखण्डानि नारिकेलफलानि स्थाप्यन्ते // 1184 // तेन पुनर्नरपतिना-राज्ञा श्रीपालेन मदनसुन्दरीसहि ११८३-छेकानुप्रासोऽलङ्कारः। १९८४-स्पष्टम् / ११८५-अत्र पूर्वार्द्ध णकारस्य सहृदयचेतश्चमत्कारिण्या असकृदावृत्त्या वृत्त्यनुप्रासोऽलङ्कारः / // 212 / /

Loading...

Page Navigation
1 ... 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250