Book Title: Sirisiriwal Kaha Part 02
Author(s): Ratnashekharsuri, Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan

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Page 248
________________ वालकहा सिरिसिरि // 239 एसा नवपयमाहप्पसारसिरिपालनरवरिंदकहा। निसुणंतकहंताणं भवियाणं कुणउ कल्लाणं / / 1339 // सिरिवज्जसेणगणहरपट्टपहहेमतिलयसूरीणं / सीसेहिं रयणसेहरसूरीहिं इमा हु संकलिया // 1340 // . तस्सीस हेमचंदेण साहुणा विक्कमस्स वरिसंमि / च उदसअट्ठावीसे लिहिया गुरुभत्तिकलिएणं // 1341 // | करोतु // 1339 // श्रीवज्रसेनगणधराणां-श्रीवत्रसेनसूरीणां पट्टस्य प्रभवःस्वामिनो ये हेमतिलकसूरयस्तेषां शिष्यैः श्रीरत्नशेखरमूरिभिरियं श्रीपालकथा संकलिता-रचिता // 1340 // तच्छिष्यहेमचन्द्रेण साधुना विक्रमादित्यसम्बन्धिनि चतुर्दशशतोपर्यष्टाविंशतितमे वर्षे लिखिता, कीदृशेन-गुरोर्भक्तिगुरुभक्तिस्तया कलितो युक्तस्तेन / / 1341 // यावन्महीतले-पृथ्वीतले सागरः-समुद्रो मेरुश्च-कनकाचलो द्वावपि वर्तेते, तथा नमस्तले-आकाशे यावत् शशिसूरी-चन्द्रमूयौं वर्तेते तावदेषा श्रीपालनरेन्द्रकथा वाच्यमाना सती नन्दतु-समृद्धि लभताम् // 1342 // 6 // 239 // 1339 -वृत्यनुप्रासः। 1340 - 1341 स्पष्टे /

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