Book Title: Sirisiriwal Kaha Part 02
Author(s): Ratnashekharsuri, Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan

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Page 236
________________ वालकद्दा सिरिसिरित // 234 // माया य मयणसुंदरि पमुहाओ राणियाओ समयंमि। सुहझाणा मरिऊणं तत्थेव य सुखरा जाया // 1300 // ततो चविऊण इमे मणुअभवं पाविऊण कयधम्मा। होहिंति पुणो देवा एवं चत्तारि वाराओ // 1301 // सिरिपालभवाउ नवमे भवंमि संपाविऊण मणुय / खविऊण कम्मरासिं संपाविस्संति परमपयं / / 1302 // एवं भो मगहेमर ! कहियं सिरिपालनरवरचरितं / सिरिसिद्धचक्कमाहप्पसंजु चित्तचुज्जकरं // 1303 // मनुजभवं प्राप्य कृतोधर्मो यैस्ते कृतधर्माणः सन्तः पुनः देवा भविष्यन्ति, एवं चतुरो वारान् मनुष्या देवाश्च भविष्यन्ति // 1301 // श्रीपालभवानवमे भवे मनुजस्व-मनुष्यत्वं सम्माप्य कर्मणा राशि-समृहं क्षपयित्वा परमपदं-मोक्षं सम्पाप्स्यन्ति // 1302 // श्रीगौतमस्वामी श्रेणिक नृपं वक्ति 'भो मगधेश्वर' मगधाभिध १३००-अत्र कमलप्रभादीनां शुभध्यानता मृत्वा सुरवरत्वेनोत्पत्तिवर्णनात् स्त्रीणां पुण्वातिशय योगतः पुरुषत्व व्यज्यते / १३०१-वष्टम् / १३०५-कर्मराशिक्षपणं विनापरमपदस्थासम्भवित्वमनेन व्यज्यते / // 234 //

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