Book Title: Sirisiriwal Kaha Part 02
Author(s): Ratnashekharsuri, Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan

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Page 239
________________ SARKARI देसणपयं विसुद्धं परिपालतीइ निच्चलमणाए / नारीइवि सुलसाए जिणराओ कुणइ सुपसंस // 1310 // नाणपयस्स विराहणफलंमि नाओ हवेहमासतुसो / आराहणा फलंमीआहरणं होइ सीलमह // 1311 // चारित्तपयं तह भावओ वि आराहियं सिवभवंमि / जेणं जंबुकुमारो जाओ कयजणचमुक्कारो // 1312 / / प्राप्तान्येवेत्यर्थ // 1309 // विशुद्ध-निर्मलं सम्यग्दर्शनपदं परि-सामस्त्येन पालयन्त्याः , पुनः निश्चलं मनो 4 यस्याः सा तथा तस्या नार्या अपि सुलसाया-नागपल्या जिनराजो-बर्द्धमानः सुतरां प्रशंसां करोति // 1310 // ज्ञानपदस्य विराधनाफले मापतुषः साधुआतो-दृष्टान्तो भवति, विद्यते आराधनाफले शीलवतीनाम सती आहरणं-दृष्टान्तो भवति // 1311 // शिवकुमारभवे भावतोऽपि चारित्रपदं तथा-तेन प्रकारेण आराधितं येन जम्बूकुमारो जातः कीदृशः -कृतो जनानां-लोकानां चमत्कारो येन स तथा // 1312 // वोरमत्यानृपराया तथा-तेन प्रकारेण कथमपि तपम्पदमाराधितं, यथा दमयन्त्या-नकनरेन्द्रपट्टराझ्या भवे तत्तपः 1310 - 131 - 112 - साष्टानि /

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