Book Title: Sirisiriwal Kaha Part 02
Author(s): Ratnashekharsuri, Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan
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________________ जिणुत्ततत्ते रुइलक्खणस्स, नमो नमो निम्मलदसणस्स / अन्नाणसम्मोहतमोहरस्स, नमो नमो नादिवायरस्स // 1208 // आराहिआऽखंडिअसक्कियस्स, नमो नमो संजमवीरियस्स। कम्महुमुम्मूलणकुंजरस्स, नमो नमो तिब्वतवोभरस्स // 1209 // जिनोक्ततत्त्वे या रुचिः सा लक्षणं यस्य स तथा तस्मै निर्मलदर्शनाय-उज्ज्वलसम्यग्दर्शनाय नमो नमोऽस्तु, तथाऽज्ञानेन यः सम्मोहो-मतिभ्रमः स एव तमः-अन्धकारं तत् हरतीति अज्ञानसंमोहतमोहरस्तस्मै ज्ञानदिवाकराय-ज्ञान सूर्याय नमो नमोऽस्तु // 1208 // तथा संयमे-संयमविषये यद्वीय-पराक्रमस्तस्मै नमो नमोऽस्तु, कीदृशाय संयमवीर्याय ?-आराधिताऽखण्डिता सत्क्रिया-साध्वाचाररूपा यस्मात्तत् तथा तस्मै, तथा कर्माण्येव दुमा-वृक्षास्तेषां यदुन्मूलन-उत्खनन तत्र कुञ्जरो-हस्ती इव कर्मद्रुमोन्मूलनकुञ्जरस्तस्मै तीव्रतपोभराय नमो नमोऽस्तु // 1209 // १२०८-अत्र अशानसम्मोहतमोहरत्वेन साधात् शाने दिवाकरत्वारोपाद्रपकमलङ्कारो द्रष्टव्यः स च हेतुहेतमद्भावापन्नारोपपरम्परावशात् परम्परितोऽवसेयः / 1209 -अत्र कर्मठुमोन्मूलनसाधात् तीवतपोभरे कुजरत्वारोपापकम् /

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