Book Title: Sirisiriwal Kaha Part 02
Author(s): Ratnashekharsuri, Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan

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Page 217
________________ जे पावभरकते निवडते भवमहंधकूवंमि / नित्थारयति जीए ते आयरिए नमसामि // 1242 // जे मायतायबांधवपमुहेहिंतोऽवि इत्य जीवाणं / साहंति हिअं कजं ने आयरिए नभंसामि // 1243 // जे बहुलद्धिसमिद्धा साइसया सासणं पभावंति। रायसमा निचिंता ते आयरिए नमसामि // 1244 // स्यामि // 1241 // पापस्य यो भरः-अतिशयस्तेन आक्रान्तान् अत एव भवः-संसार एव यो महानन्धकूपस्तस्मिन् निपततो जीवान् ये निस्तारयन्ति तानाचार्यान्नमस्यामि / / 1242 // अत्र-अस्मिन्संसारे ये आचार्या हा जीवानां मातृतातबान्धवप्रमुखेभ्यो-जननीजनकभ्रात्रादिभ्योऽपि अधिकं कार्य साधयन्ति, तानाचार्यान्नमस्यामि है // 1243 // बहुभिलब्धिभिः समृद्धाः-समृद्धिमन्तः, अत एव सह अतिशयर्वर्तन्ते इति सातिशयाः सन्तो ये शासनं-जिनमतं प्रभावयन्ति-दीपयन्ति, कीदृशा ?-ये राजसमा-नृपतुल्याः, अत एव निर्गता चिन्ता येभ्यस्ते निश्चिन्तास्तानाचार्यान्नमस्यामि // 1244 // १२४२-अत्र संसारस्य महान्धकूपत्वारोपाद्पकमलङ्कारः / १२४३-स्पष्टम् / १२४४-स्पष्टम् / BEHORE

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