Book Title: Sirisiriwal Kaha Part 02
Author(s): Ratnashekharsuri, Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan

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Page 212
________________ वालकहा सिरिसिरि // 221 // St ***** अरहंता वा सामन्नकेवली अकयकयसमुग्घाया। सेलेसीकरणेणं होऊणमयोगिकवलिणो॥ 1227 // जे दुचरिमंमि समए दुसयरिपयडीओ तेरस अ चरमे। खविऊण सिवं पत्ता ते सिद्धा दिंतु न सिद्धिं // 1228 // चरमंगतिभागोणावगाहणा जे अ एगसमयंमि / संपत्ता लोगग्गं ते सिद्धा दितु मे सिद्धिं // 1229 // कृतो वा समुद्घात:-केवलिसमुद्घातो यैस्ते तथा एवम्भूता ये योगीन्द्राः शैलेशीकरणेन-आत्मप्रदेशस्थिरकिरणरूपेण अयोगिकेवलिनो भूत्वा / / 1227 // द्विचरमे-आयुःक्षयसमयात् प्राक्तने समये द्वासप्तति 72 प्रकृती माद्यपातिकर्मोत्तरप्रकृतीः क्षपयित्वा च पुनश्चरमे समये त्रयोदश प्रकृतीः क्षपयित्वा शिवं-मोक्ष प्राप्ताः, ते सिद्धा मे-मा मुक्ति ददतु // 1228 // चरमा-अन्तिमा अङ्गस्य-शरीरस्य त्रिभागेन ऊनावगाहना-देहमानं येषां ते तथा, ये च ईदृशाः सन्तः 1 एकस्मिन्समये लोकाग्रं सम्प्राप्तास्ते सिद्धा मे सिद्धिं ददतु // 1229 // पूर्वप्रयोगतो धनुर्मुक्तबाणवत्, तथाऽसङ्गात्-निःसङ्गतया कर्ममलापगमेन अलाबुद्रव्यवत् , तथा बन्धनच्छेदात्-कर्मबन्धनच्छेदनेन एरण्डफलवत् , १२२७–१२२८-१२२९-स्पष्टानि / * *** ***** // 221 //

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