Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti
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तोसरा अध्याय
॥१॥ ॥२॥ ॥३॥ ॥४॥ ॥१॥
॥१८॥
मा दिदेवनु आदियकालदि फेळ्द । साधनेयध्यात्म योग ।। दादिय प्र ज्ञानवळिद धर्मध्यान । साधित काव्य भूवलय णे रदोळात्मनभ्युदय सौख्यदपोंदे । दारियुदोरेताग अ ज ज ॥ सारा मशिखियेरि बरुवागयोगद । सारवैभववु मंगलवु हि तवादतिशय मंगलप्राभूत । सततवु भद्रपर्याय ॥
जा वज्ञात तत्वगळनेल्लव पेळ व । ख्यातांक शिवसौख्य काव्य म नवनु सिंहपीठवनागिपकाव्य । दतुभव जिनमार्गवागे ॥ न नेकोनेवोगिसुत् अध्यात्मयोगब । घनसिद्धांत लेक्कलि म रितुदे ज्ञान तन्नरिविनोळ नोळ पुदे । सरुवज्ञ दर्शन ति येंब । परमनकारपके इवेरडरोळ बेरेयुदे । सस्वचारित्र अनंत
परमात्मनरिव अनन्त ॥६॥ करुणेयुबेरेद अनंत ॥७॥ वरसिद्धगोष्ठियनंत ॥८॥ रितु तन्नात्मअनंत ॥६॥ परिवुनोडिदरिगनंत ॥१०॥ दोरेवुदेसुरुरत्नांक ॥११॥ सरससमख्यातदनंत ॥१२॥ सरमग्गियोळगसंख्यात ॥१३॥
बरुवुद गुणिसलनंत ॥१४॥ करगदनंत संख्यात ॥१५॥ परिशुद्ध चारत्रिदंक ॥१६॥ विरचित गरगनेयनंत ॥१७॥ ए वशुद्ध चारित्रदतिशयविदलि । अवनियपरिसुव नव मि ॥ सवरदे मेरुवादेनिल्वकुळितिर्प ।। नवयोगशक्तियंकवदु
नवशुद्द दर्शनयोग ॥१६॥ अवर घ्यानिपशुद्धयोग ॥२०॥ अवनियमरेवसुज्ञान ॥२॥ नवमांकदद्वयतयोग ॥२२॥ सुविशाल पृविधारणेय ॥२३॥ अवसरदोळ बंद योग ॥२४॥ सविद्वतनध्यात्मयोग ॥२५॥ नवदेवतेय काम्बयोग ॥२६॥
नवमांकवादिययोग ॥२७॥ अवरु साधिपशक्तियोग ॥२६॥ - मसिद्धपरमात्मएन्नुत ननदलि । ममकारवेन्नात्म
राग ।। समनिसेद्रव्यागम बंधदोळ कटि । दमलात्मयोग चारित्र ते नम शुद्धात्मयोगायेन्नुत । प्रानत भावस्वभाव ।। ध्यानान नदबाह्याभ्यंतर । वेनिल्ल परभावबेनुत हि तयोगवताळ्दयसरदोळ योगि । अतिशय बहिरतरंग ॥ धात्रियनेनहनेल्लव मरेदातनु । प्रीतियोळ्मेरुविना म यनिसिदध्यात्मयोग वैभवकेंदु। सततदुद्योग पर नगि ॥ हितवेनगागेलोकानवेरवेरुवेनेव । मतियुतनागुत योगि
हितदनुभवहोंदिवाग ॥३३॥ अतिशय शिवभद्रसौख्य ॥३४॥ सततदभ्यासव बुद्धि ॥३५॥ हितवीवचारित्रशुद्ध ॥३६॥ हतिसलुवीयांतराय ॥३७॥ हतवुदर्शनमोहनीय ॥३८॥ अथवाउपशमवागे ॥३६॥ अथवाक्षयवागलात्म ॥४०॥ हिनवेशुद्धात्मस्वरूप ॥४१॥ नुत शुद्धसम्यक्त्वसार ॥४२॥ नुतस्वसंवेद विराग ॥४३॥ प्रतिशय सबलविराग ॥४४॥
हितवदेतन्नस्वरूप ॥४५॥ हतकमलीनवात्मनोळु ॥४६॥ अथवास्वरूपाचरण ॥४७॥ गुरुगळाचरिसुव चारित्रसारद । परिये देशचारित्र ।। दिरवि अप्रत्याख्यान दुपशम । बरलयवा क्षयोपशमं
रदे भयवागे देशचारित्रद । दारियु सकलचारित्र ॥ शूर झा निगळसोम्मागुवकालदे । मरने क्रोधादिनाल्कु हि तवल्लदिरुवकषायगळ पशमं । अथवाक्षयदुपशम मा॥ सततोद्योगद फदिवक्षयवागे । क्षिति पूज्यमहावतबहुबु जुजुणु रेनुवदिव्यध्वनि सारद । गणनेयसकलचारित्राा क्षणक्षरएकाग्रतउज्वलवागुत । कुणियुतबहुदात्मयोग
॥२६॥ ॥३०॥ ॥३१॥ ॥३२॥
॥४८॥ ॥४६॥ ॥५०॥ ॥५ ॥

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