Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti

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Page 134
________________ .. सार भूषलय साथ सिदि सब जगनारपती ज* यद सिम्हासन नालमोदिदिह । नयव निर्मलमार्गदि र विम्। जयरत्न स्फटिकगळ् केत्तिरुवंकवे। नयप्रमारणगळु मोम्द प्रागे।१६४ गोड पुरदा हिन्दे इरुष सिम्हासन । रूपाळदिह ई गणित ॥ श्रीप ति* यडियु सोक्किद दिव्य मंगल । श्री पाहुडद शोभेयति ॥१६॥ कोपळिद सिम्ह मुखगळ् ॥१६६॥ तापप्रतापद् अहिम्से ॥१६७॥ रूपदोळ शौर्य प्रसिद्धि ॥१६॥ ध्यापित भय्याम्जहरुदय ॥१६६॥ अपरनेरपि शक्ति पी पद्धतिय पाहुनु ॥१७॥ या पाहुडवे प्रारुतबु ॥१७२॥ रूपस्थ वीररासनवु ॥१७३॥ दीपद ज्योतियादि भंग ॥१७४॥ रूपनेल्लरिगे तोरुखुदु ॥१७५॥ झरी पददंग तोरुवुद ॥१७६॥ श्री पद्धतियायंक ॥१७७॥ याफ्नीयर दिव्य योग ॥१७॥ कापाडयदु शान्तियनु ॥१७॥ रूपागिबहुदु भारतिमे ॥१०॥ श्री पदवलय भवलय ॥१८॥ सप्य के बहुदु भारतदि ॥१२॥ ह.* रुषद स्फटिक सिम्हासन प्रतिहार्य । सरि मुन्के देवर ग* ए॥ निरुततु कयमुगिदिहज़पुल्लितमुख । सरसिजद्विन्द सुचिहरु ॥१५३॥ प्रोत बन्निारि दर्शनक एग्नुवन । हाडो इदेम्ब दुन्दुभि रण* ॥ पाडिन गम्भीर नादयिहुदु मुन्दे । नाडिन हूगळ मळेषु ॥१४॥ दिक यदिन्द बीवुदु वर सूर्य शोभेय । सबिय भामण्डल बन् ध% नव पूर्णचन्दर अथवा शन्खदन्तिह । सविय् अरबलाल चामर॥१५ नवस्वर हस्व दीर्घ प्लुत ॥१८६॥ अवर वर्णगळ् इप्पत् ऐदु ॥१८७॥ सवियह वेन्टु व्यन्जन ॥१८॥ सन्नम् प्रहकह यह योगवाह ॥१८६॥ विवरक्वेन्तेम्ब शन्के ॥१६०॥ अवतार दुत्तर विन्तु ॥११॥ नव स्वरवर्णय्यन्जनब ॥१२॥ वियरद् योगवाहाळम् ॥१६३॥ सविय्प्रोमद अक्षचामरतुम् ॥१६॥ अबुगळु अरवत्त नाल्कु ॥१९५॥ अवनेल्ल कूडलु प्रोम्दु ॥१९६॥ इवु अष्ट महाप्रातिहार्य ।।१९७॥ नवम अन्धद मंगलद ॥१९८॥ विवर मंगलद प्राभूत ॥१६६॥ कविगे मंगलद् आदि वस्सु ॥२०॥ शिव चन्द्रप्रभ जिनरस्क ॥२०१॥ नवमांक सिद्ध सिद्धांक 1॥२०२॥ अवतार कामद बहु ॥२०॥ शिव सवख्य रससिद्ध काव्या।२०४॥ सवार्गे अरबत्तनाल्कु ॥२०॥ नवकार मंगल ग्रन्थ ॥२०॥ भवहर सिद्ध भूवलय ॥२०७॥ नव मन्मथरादियन्क ॥२०।। नवद्राम्हिलिपिय भूवलय ॥२०॥ त* स लोकनालियोळडगिह भव्यर। पशगोन्ड सम्यक्तवद र स ॥ यशकाय कल्पद रससिद्धि हूगळो । कुसुम मंगलद पर्याय ॥२१॥ सरे मतेयोळक्षरदंकब तोरव । गमकद शुभ भद्रअ वर दे क्रमन सक्रमगेरद चन्द्रप्रभ जिन । नमिसुध भक्तर पोरेको ।।२११॥ पास शवागदलिह अक्षरांक बनित्त । प्रा सिद्ध पदविगेरिसु बार ॥ राशियन्कवदनु भाषाम्बत्तरोळ् कट्टि । दाशेय पाहुए अन्य ॥२१॥ ली लांक प्रोम्बउ प्रोमटु सोन्ने एन्टागे। मालेयल अन्तर ह* रुषा। दोलेयोमोमधुमूरोम्दुमूरोम्दुम्। बाउ'काव्य भूमिरप)वलय२१३ उ ८०१९+अन्तर १३१३१=२११६० =६, अथवा अ-उ १०,५५,८८+२११५० =१,२६,७३८ । पहले श्लोक की श्रेणी से नीचे तक पढ़ते जाय तो प्राकृत निकलती है। * बोच में से पढ़ने से संस्कृत भाषा निकलती है* उबवाद मारणंतिय परिणदथसलोय पूरणोणगदो। कर्तारह श्री सर्वज्ञदेव स्तदुत्तर ग्रन्थकारह, गावर देवहः । केवलियो प्रबलंबिय सव्वजगो होदित्तसरणाली॥ प्रति गरगधर देवाह..............

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