Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti

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Page 248
________________ २२४ .:. . सिरि भुवलय मात्र सिद्धि संघ बेगलोर-दिल्ली खंड में किया जायगा । उपयुक्त चौबीस दातारों ने माहार, औषधि, शास्त्र इस सुरमरक्षण काव्य में ऋद्धि, अय नाश, प्राण रक्षा, यश, (कान्ति).. अभय इन चार प्रकार के दान सत्पात्रों को देकर त्रिकालवी जोदों के कल्या- इस्तम्भन, पाचन आदि पाठ मूत्रों द्वारा औषधियों का वर्णन है । णार्य लोकोपकारो इस विशुद्ध आयुर्वेदिक शास्त्र को स्थायी रक्ता। उनका उस रत मरिण को सेवन करने मान से नवीन जन्म के समान नवीन , यह कार्य अत्यन्त श्लाघनीय है ।३६ ५५॥ कायाकल्प हो जाता है। तथा उस रस मरिण सेवन से प्रात्मा में अनेक कलायें उपर्युक्त प्राणावाय पूर्वक जो अंक हैं उतने ही अंक प्रमाण एक तोले । प्रगट होती हैं ।६० परिशुद्ध भस्म बनाये हुए पारे में छिद्र हो जाते हैं। छिद्र सहित बह पारा' इस रसमरिण को सबसे प्रथम भरत चक्रवर्तो ने सेवन किया ।६। परस्पर में पुन: नहीं मिलता 1 इसी पारे में यदि फूलों के रस से मर्दन करके इस पृथ्वा के वही पुरुषोत्तम थे।६२॥ अग्निपुट में पकाया जाय तो वह रत्न के समान प्रतिभाशाली विशुद्ध रसमणि वे हो सत्य वीर्य शाली थे ।६३। बन जाती है। उस मरिण को बज़ खेचरी धुटिका, रलत्रय औषधि, बसन्त वे सदा शत्रु मित्र को समान समझते थे । ६४ ।। इस कारण वे साम्राज्य ऐश्वर्य के अधिपति बन गये थे।६५४ . . कुसुमाकर इत्यादि अनेक नामों से पुकारते हैं । इन मरिणयों को पृथक् पृथक रूप से यदि अपने हाथ में रखल तो आकाशगमनः जलगमन इत्यादि अनेक वे ही मर्मज्ञ तथा धर्मवीर थे।६६। सिद्धियां उपलब्ध हो जाती हैं। यह सब पुष्पों से बन जाता है न कि वृक्षों को। ये ही दानवीर थे १६७१ छाल आदि एकेन्द्रिय जीवों के घातक पदार्थो से १५६/ वे ही धर्म श्रोताओं में प्रमुख थे।६८.. - : विवेचन-माचार्य श्री कहते हैं कि जिस प्रकार भूवलय ग्रन्थ राज वे ही शुरवीर योद्धा थे।६६। की रचना गरिरात शास्त्र की पद्धति से की गई है उसी प्रकार संयोग भंग से वे कवियों द्वारा बन्दनीय तथा स्तुत्य (प्रशंसनीय) थे ७०।। वे नवोन भर्म प्रिय श्रोता कहलाते थे।७१॥ (Permeetesletion and comlicacial ). अनेक प्रकार की भक्तियों तथा बिनयों से युक्त थे.१७॥ वसन्त कुसुमाकरादि रसों के संयोग से विविध भांति की रासायनिक औषधियां प्राप्त की जा सकती है। जब केबल एक ही पौषधि में महान गुण वे स्वयं-सम्राट कहलाते थे।७३। विद्यमान है तो संयोग भंग विधि से समस्त सिद्धौषधियों को एकत्रित करने पर। वे लावण्य पुरुषोत्तम कहे जाते थे।७४ . कितना गुण होगा, सो वर्णनातीत है। समस्त पुरुषों में श्रेष्ठ शरीर धारक थे ७५३ , वे पावन पुण्डरीक ये ७६। १८ हजार पुष्पायुर्वेद के अनुसार कुल निकलने से पहले वृक्षों को कली दान के प्रभाव मे नबीन फल प्राप्त करने वाले थे।७७५ तोड़कर उन कलियों का प्रकं पुथक् पृथक् निकाल कर पारे के साथ उस रस इसी पकार योग धारण करने वा राजाला कुणाल था 1७८ .. में पुट देते थे, तब वह पाद रस कणि तैयार होता था ।५७। ऐश्वर्य में नारायण के समान ये ७६। उस पुष्पायुर्वेद को औषधि राशियों को कहनेवाला यह भूवलय है।५८। उस पौषधि के चबाने से सुभौम चक्रवर्तों के समान तेजस्वी हो जाते " उस पुष्पायुर्वेद के अनुसार तैयार की गई रस मणि सेवन करने से 10 वोर्य-स्तम्भन होता है, वृद्ध अवस्था यौवन पवस्था में परिणत हो आती है। उग्रता में वे भुजंग के समान थे। .उसके सेवन से यकाल मृत्यु नहीं होतो, शरीर मुड़ हो जाता है।५८ पृथ्वी का अज्ञान दूर करनेवाले ये 1८२ ... :...:...

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