Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti

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Page 254
________________ सिरे भूवक्षय सर्वार्थ सिदि ग गौर-विमी नेते हैं। कर्म पहिंसा द्वारा सम्पन्न किये हुए रस का शरीर पर लेप करने से श्री पूज्यपाद प्राचार्य ने प्रायुर्वेदिक अन्य कल्याणकारक द्वारा सिद्ध शरीर लोहे के समान दृढ़ हो जाता है। यदि उस रसमणि का लोहे से स्पर्श । रसायन को काव्य निबद्ध किया, उसी को मैंने (श्री कुमुदेन्दु ने) भूवलय के किया बावे तो लोहा सुवर्ण बन जाता है। श्री कुमदेन्दु प्राचार्य कहते हैं कि रूस में अंक निवड करके रोगमुक्ति का द्वार खोल दिया ।२४॥ रसमणि के सिद्ध हो जाने के समान प्राध्यात्मिक सिद्धि हो जाने पर पात्मा । यह सिद्ध रस काव्य मंगलमय रस को दिलानेवाला है। निसन्देह यह अजर-अमर बन जाता है ।२२।। | भूवलय अर्हन्त भगवान का उपदिष्ट आगम है , इसको सुनो और हिंसा मार्ग श्री कुमदेन्दु प्राचार्य कहते हैं कि 'इसलिए अज्ञानी लोगों ने जो जीवों (जीव हिंसा से औषध निर्माण) को त्याग दो ।२४६।२५०। की हिंसा द्वारा प्रौषधि तैयार करने का घायुवेद बताया है उसको त्यागकर मन वचन काय को शुद्धि पूर्वक भगवान के उपदिष्ट पुष्प आयुर्वेद को प्रज्ञान का परिहार करना चाहिए ।२२२॥ ११८ हजार श्लोकों में रचना करके भूवलय में गभित किया है। १८००० में से ... पाप और पज्य का विवेचन अच्छी तरह जानकर हिंसामय पाप मार्ग तोन बन्यों को हटाकर शेष रहे 11+t ) को नवमांक में लाने पर का त्याग करके अर्हन्त भगवान द्वारा उपदिष्ट भूवलय के अनुसार अहिसा मामे उसे मन वचन काय रूप तोन के साथ गुणा करने पर (६४३-२७) २७ का अनुसरण करना चाहिए ।२२३॥ । के प्रमाण यह भुवलय ग्रन्थ है ॥२५॥ सत्यदेव गुरु शास्त्र ही इस जमत में शरण हैं ऐसी अटल श्रद्धा के साथ २७ घंकों में गर्मित इस भूवलय ग्रन्थ को मैं मनवचन काय की यदि मायुर्वेद को सीखना चाहोगे तो हम तुमको शीध पुष्प प्रायुब द का ज्ञान । त्रिकरण शुद्धि पूर्वक भक्ति से नमस्कार करता हूँ। चिरकालीन परम्परा से प्राप्त करा देंगे और तुम्हें उस पायर्वेद द्वारा नवीन जन्म प्राप्त के समान से चले आये हुए इस मूवलय अन्य को शुद्ध मन से बार-बार नमस्कार करता कर देंगे ।२२॥ हूँ।२५२। श्री पूच्य पाद आचार्य कहते हैं कि भारत देश की जनता को महिसा कितने पाश्चर्य की बात है कि परक ऋषि प्रणीत हिंसामय प्रायुर्वेद मय पुष्पायवंद सुनने का सौभाग्य मिला और मुझे जनता को मायुबद सुनाने का द्धिमान राजा अमोघ वर्ष की राजसभा में भगवान जिनेन्द्र द्वारा उपदिष्ट का सौभाग्य पाप्त हुआ है ।२२६-२२७ अहिंसामय भायुर्वेद द्वारा परिहार करा दिया ।२५३। इस प्रकार जिन २४ तीर्थकरों को पितृपरम्परा से पायुर्वेद चला पाया। शिवपार्वतीश गणित द्वारा कहा गया वैद्य भूमिका विवरण तथा है उन तीर्थदूरों को मात्र परमरा को अब बतलाते हैं । भगवान ऋषभनाथ उसका समन्वय का अन्तर का एक, नौ अंक तथा तीन, पांच एक (३-५-१) की माता मरदेवी, अजितनाथ को माता विजया, शम्भवनाथ की माता सुषेणा, अक्षर नाम का यह भूवलय ग्रन्थ है। अभिनन्दन की माता सिद्धार्था, सुमतिनाथ को माता पृथिवी, चन्द्रप्रभ की माता जैसे नो १-छोटे अंक ३+५+१= पुनः १०२६ पानेवाली मक लक्ष्मण, पुष्पदन्त की माता रामा, शीतलनाथ की माता नन्दा, श्रेयांसनाथ की। विद्या यह 'लु' अक्षर श्री सिद्धि भगवान द्वारा चढ़कर प्राप्त किया हया चौदह माता वेणुदेवी, वासुपूज्य की माता विजया, विमलनाथ को माता जयश्यामा, 1 गुरण स्थान नामक अरहन्त भगवान को परम्परा से चला पाया हुपाल' शब्द अनन्तनाथ की माता सर्वयशा, धर्मनाथ की माता सुव्रत, शांतिनाथ की माता । है।२५४-२५॥ ऐरा, कुन्युनाथ की माता लक्ष्मीमती ( श्रीमती), अरहन्तनाथ की माता मित्रा ! समस्त 'लु' अक्षरांक १०, २०६+समस्त मक्षरांक १५, ३९०+समस्त मल्लिनाथ की माता प्रभावती, मुनिसुव्रतनाथ की माता पदमा, नमिनाथ को । अन्तरान्तर, २७ २७, ४२३ अथवा प्र-२, ७६, ७११+'लु' माता बप्रिला, नेमिनाय को माता शिवादेवी, पार्श्वनाथ की माता बमिला ! २७, ४२३:३०, ७,६३४ । (बामा) पौर भगवान महावीर की माता प्रियकारिणी है।२४७) इति चौदहवां 'लु' मध्याय - -

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