Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti

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Page 214
________________ सिर भूवनय वारसा0-rimar गुणा करें तो कुल ६०० कमल चक्र हो जाते है। इस ९०० को कमल चक्ररूपो समवशरण की रचना में मेष शृङ्ग वृक्ष का उपयोग बतलाया है । यह बनावें और उन्हीं चक्रों से भगवान् के चरण कमलों की गिनती करें तो लब्धांक 1 भो अशोक वृक्ष है 1४०1 से यह अध्याय निकल कर पा जायगा। इसे पदम-विष्टर विजय काव्य कहते! दास वृक्ष को भी अशोक वृक्ष के नाम से पुकारा जाता है।४१॥ हैं।२५॥ पालोवीरू अर्थात् शाल्मली वृक्ष श्री अशोक वृक्ष है ।४। श्री नमि जिनेन्द्र स्वर्ग से च्युत होकर अपनी माता के गर्भ में भाने के देव मनुष्य इत्यादि जीव राशि के सम्पूर्ण रोग को नाश करने वाले समय में उत्पल पुष्प के रूप में रहे थे। ऐसी भावना भाते हये यदि उस पुष्प । ये सभी वृक्ष चौबीस तीर्थंकरों के तपोभूमि के वृक्ष थे 1४३। को पूजा करें तो स्वर्गादि सुखों को प्राप्ति हो जाती है ।२६।। इन वृक्षों को ध्वजा घंटादि से अलंकर करते हुए यक्ष देवगण बीबीस मादि मन्मय के पिता श्री ऋषभ तोर्थकर ने वट वृक्ष के नीचे तपस्या तीर्थकरों के स्मरण में पूजा करते हैं ।४४) की। इस कारण उसे जिन वृक्ष और शोक निवारक अर्थात् अशोक वृक्ष भी। इन वृक्ष के पुष्प जब खिल जाते हैं तब उसमें से निकलने वाला सुगष कहते हैं ।२७ की वायुका दारीर से स्पर्श होते ही शरीर के सभी बाह्य रोग नष्ट होते है। सप्तच्छद अर्थात् ७.७ पत्तों वाला सुन्दर वृक्ष भी कल्प वृक्ष है। सगंध के संघने से मनके रोग का नाश होता है। ऐसे होने से इस फूलों की इस वृक्ष के नीचे श्री मजित तीर्थंकर ने तप किया था। इसलिये यह भी अशोकपीस कर निकले हए. पारे के रस से बनाये हुया रस मणि के उपभोग वृक्ष है।२८॥ से प्राकाश गमन अर्थात् खेचर नामक ऋद्धि प्राप्त होने में क्या आश्चर्य है? शाल्मलि (सेमर) वृक्ष के नीचे थी संभवनाथ ने तप धारण किया।२६ मर्शद कुछ भी गाड्चर्ग नहीं है ।४५ सरल-देवदार और प्रियंगु इन दोनों वृक्षों के नीचे अभिनन्दन व सुमति इन चौबीस को परमात्म रूप वैद्यक शास्त्र में और भी अनेक प्रकार के तोथैकर ने तपस्या की थी, इस कारण यह भी अशोक वृक्ष कहलाता है।३०। अर्थात अठारह हजार प्रकारके वृक्षों की जाति बतायी गयी है । इस मंगलप्राभूत सम्यग्दर्शन शास्त्र से भात्मा को पहचान कराने वाला सम्यग्ज्ञान उन अध्ययन से गणित शास्त्र के मर्म को जानने वाले ही निकाल सकते हैं ।४६।। दोनों का स्वरूप दिखलाने के लिये कुटकी और सिरीश का चिन्ह बतलाया स्यावाद रूपी तलवार की धार तीक्ष्ण है। इसी तरह के तीन बुद्धिमान गया है। इसे भी अशोक वृक्ष कहते हैं । ३१) जन बहुत सूक्ष्म विवेचन करके इस भूवलय से पुष्पायुर्वेद गरिएत निकाल नागतृक्ष भी अशोक वृक्ष है। चन्द्र प्रभु जिनेन्द्रदेव ने इसी नाग वृक्ष के ने नोचे तपस्या करके प्रात्म-कल्याण किया है ।३२१ जिस संख्या को देखें उससे ही माता है, यह महावीर भगवान इसी रीति से नागफरिए और कपित्थ (कथ ) ये दोनों भी कल्प वृक्ष का वाक्य है। इस अध्याय में २२५० अक्षर हैं। पलाश अर्थात् तुम्बुर वुझ भी अशोक वृक्ष है ।३४॥ संस्कृत के अर्थ को लिखते हैं:तेन्दु वृक्ष पाटलि, जम्बू (जामुन) भो अशोक वृक्ष है ।३५१ समस्त मत गण परहित में रत हों। सम्पूर्ण दोष नाश हो। समस्त अश्वत्थ और दधिपणं भो अशोक वृक्ष है ।३६॥ शासन को जीतने वाला जैन शासन जयवंत हो। नन्दी और तिलक भी अशोक वृक्ष है ।३७। श्रीमत्परम गंभीरस्याहादामोघ लाञ्छनम् । पाम और ककेलि ये दोनों वक्ष भो अशोक वृक्ष हैं ।३८। जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जैन शासन । चंपक (चंपा) और बकुल भो अशोक वृक्ष हैं ।३।। बारवां अध्याय पूर्ण हुमा: । । स्याद्वाद

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