Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti
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सिरि पतव
साहिदि संप बैंगीर-दिल्ली वृषभ पशवरियर् ॥५३॥ कावर् तोस्वत् मोबद सहसर ॥५४॥ स रि 'योळोम्दे दारियोळ्' बह 'वेगदि' वर 'व्यक्यवागोड्उपन' पर रर'माब'वर' व्यक्तित्वके तन्दन्ते । सरलवादव्यतिळिवर॥५५॥ स* नवर् 'उसाघुगळ अ[९] सद्रुश 'क्रूणेय' । धन धरपो एन्दे' र ख* ॥ तनदे 'ननुब हसुबदु गरियने मेयु' । वेनु 'वतेरवि परमादन' ॥५६॥ भु कृतिय अन्न 'वगोचरिवदतियित्' । व्यक्तदिन 'दुडि ह न गु'खु' ।। शक्तर् 'निरेह वतिगळम् [१०] तिरेयोळु'। व्यतित्व
तडेयि ळळडे' ह ।।५७ कुल नयवहरिदाडुववरणाळियन्। ते निस्सन्ग वेरसुत चरि ट् ॥ युविन सुवेकानग विहारिगळ गुरु'।मुनि गळयदनेयसादुगळ अब[११]॥५८।। मा* नव'भिक षुळिवरु सकळ तत्व । छ यान'गळनुसाक्षात् ध् प्र* रिसि । तान प्रागिबेळगुव अक्षरज्ञानिगळ्'ातानुमादित्यनन्दादिर ॥५६॥ रो पविलळदेर कषिप तेजोमूरति' । आमे यवर [१२]उ'रमेयमननु म* ॥ ई लुततिह सागरनन्ते गम्भोर'द् । ईसुवरसमरदोळ करम'।६०||
धमभन्ग 'ऐवर अञ्ग ॥६१॥ दइसेरादि 'केसरिसेनर' ॥६२॥ सिसिद्धरु 'चारसेन गुरु ॥६३॥ हसमन 'वज्र चामररु ॥६४॥ नुसुळद 'बजरसेनगुरु' ॥६५॥ वशगुप्त 'पादत्त सेनर' ॥६६॥ मसकद 'जळज सेनगुरु' ॥६॥ नसेयळिविह 'बत्तसेनर्' ॥६॥ वेसेव 'विदर्भ सेनवर' ॥६॥ तस रकष 'नागसेनगरु' ॥७॥ रातिगे 'कुन्थुसुनगुरु' ७१॥ ससहर 'धर्म सेनवह ॥७२॥ इषिमद्दर सेनगुरु' ध३॥ पसरिप 'जयसेनगुरु ॥४॥ सदब सधर्म सेन ॥७॥ गसदृश चकर बनध गुरु ॥७६॥ यशद 'स्त्रयभूसेनर् ॥७॥ मसकविजइ 'कुम्भसेनर' ॥७॥ न्सहर 'विज्ञासेनवरू' ॥७९॥ मेसेयरु भल्लि सेनगुरु' ॥५०॥ हिसिहिग्गदिह 'सोमसेनर ॥१॥ मस 'वरदत्त मुनीन्द्रर' ॥२॥ एसेव 'स्वयम् परभारतिषु' ॥३॥ नुसिर 'इन्दरभूति विपरवर ॥४॥ वशदनादिय 'गुरुवम्श' ॥८॥ दृशधर्मधर 'सेनवरश' ॥८॥ नसहरर 'प्रोमदारय दोमदु ॥७॥
एसेयुव 'सेन भूवलयर ॥८॥ त* नुदिन कर्म 'व गेवर समतेयो' । 'धन 'मन्दराचळरस' च* ॥जनुमते उपसर ग वमरळ कप्प रागिन चन्द्विहरुम[१३]माह।।६।। हे 'ध 'ननाद चन्द्रमनन्ते शान तिय' । माध् 'रूहनु सार व' वर तु* द्याधन चन्द्रम'ख रु साहस व्रत। धोधन गळमणिय नुप्य' ॥६॥ व* रिसुत रूहिन मरिण गळनतिहर ह[१४]
अ क्षरवेने नाशवळि' चि* दरिदकपरवेम्ब परिशुद्ध केवल'। वर'झान दिरवमु सहने ॥१॥ प्र वनि यो विरुव भूमियतेर अखिव । नव समतेयोलोरेवर म[२५] नि* अवमिवाडिह 'मएरिणनिम् गेवळाप्रवुमनेकट्टे प्रदरोळवा ॥२॥ गि जवि वासिप हाधिनन्तेसदनवनितार' जरुफटिळलि' के वानिजद्'येमुदविल्लदे वासिपरब (१६)राजसुत'तिरेयोळगिद्दा ३॥ सा तिरेय मुदलिह सुरुचिरवाका श' त'वन्ते पोरेववरारि॥ म ति हति'ललद निरालम्बर सहबरु' । सतत निरलेपकरया' (१७)॥१४॥
* व सार्व कालदोळु मोक्षदन्वेषण'नव'दोषियोळिरुव सा ला ॥सवणसा 'धुगळु निर्वाएपदन साधि । मुवमत बाळुवरवरस ॥४॥ घोर रणहित सर व साधुनळिगे' । वारियो नमि' सह(१)धर्म मास 'वासातकर्मभूसियोळि ह शार महामूरुकालदोळ निर मल'VIN६॥

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