Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti
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सिरि भूषालय
सर्वार्थ सिद्धि संघ बैगनौर-दिल्ली
रिणरयहोगा 'वायुभूति' ॥७॥ दारिजपद 'अनि भूति' ॥६॥ ररसे 'सुधर्मसेनगुरु' | | वीरन् 'पार्यसेदगुरु' ॥१०॥ हर 'मुनडिपुतारवयगुरु' ॥१०१॥ न श्रेष ट 'मयतरेह सेनर' ॥१०२॥ नर 'प्रकम्पनसेनगुरु' ॥१०३॥ मरवेबळिद 'अन्धरगुरु' ॥१०४॥ निरयके होगद 'प्रचलरु' ॥१०॥ हरूष 'प्रभाव सेनगुरु' ॥१०६॥ विरचिसिबरु पाहुउवम्' ॥१०७॥ तिरेय 'केवलव रषिसलु' ॥१०८।। शारदोळकक्षरब कटटुबरु ॥१०॥ यरडने गणधररवरु ॥११०॥ बरदन्क भञ गान्क वेवर् ॥११॥ इरद महाभाषेयरिद ॥११२॥ कार्य कारणद सम्बन्धर् ॥११३॥ गिरयद ज्ञ्यान वेळ्दवर ॥११४॥ भोरण बेद अन्य धरर ॥११५॥ मरदोळ हितब माधिपह ॥११६॥ दारणाशियलि वादिपर ॥११७॥
हर शिव शकर गणितर् ॥११॥ विरचित कव्य भूवलयर् ॥११६।। बा* लव'पद्धतियाद भूवलयद्म' । पालिन्न'कर्म भूमिय प्र' र घर पालिसिर(१६)वर'ई'शुद्ध चयतन्य' द विलसित लक्षण परम् ॥१२०॥ हके रुष निजात्म तत्वचि' य 'परम'रु । बरद सम्यग्दर्शान' वर ॥सर'द वर्तनेयिर्प परमात्म दर्शना । वरदा'चारन् (२०) हवरिण ॥१२१ । तक रिण सि कोळ ळ तलिरियवर्गवेललव' । गुण अवरु तम्मा' लोउलि विनुता'त्मनोळ तन्दु समतेयोळविकार'जिन'दानन्द मयरागि'॥१२२॥ तक मगल्लि सुविशालवह तन्नन्दव'कर'मा[२१]सर्व साधुउनु' की प्रालिसिर । बमल भेद ज्ञानदिन्दलि सध' शासमल रागादिगळेम्य ॥१२३॥ र वर 'गर्वद परभाव सम्भन्ध'बे। सवि'वळिसुवसर''ब रु ॥ अवरक्रियेयु सम्यग्ज्ञानम[२२] मनसिज । सवन'मदनरी निश्च'॥१२४॥ प्रय बनि यजमान दनुभवदोळगाचरि। प'व'चिनुमयतत्वा त* निया। नवद'भयास ज्ञानाचारकोनेयादि'सिनियरियाचार प्रा[२३]'तानु'॥१२॥
प्रवनरिविह सेनगणरु' ॥१२६॥ गबनिये 'तानेम्ब गुरुगळ्' ॥१२७॥ नवदन्क भुवलयवेळदर् ॥१२८।। 'भवदन्त्यभवन तोर्दवरु ॥१२६॥ लवदनक 'नाल्कुमागलरु' ॥१३०॥ गवियुकयलासदोळ् वषभम् ॥१३१॥ मवरोळ् अजितरु सम्मेद ॥१३२॥ एवेळ वे शम्भव अलि ॥१३३॥ लावभिनमादनरल्ले ॥१३४॥ कवि बन्दद्यसुमतियर् अल्ले ॥१३५॥ सवरण पद्मपरभरल्ले ॥१३६॥ टेवु सिरिसुपार्शवरु प्रर्लल ॥१३७॥ नव चन्द्रप्रभ पुष्पदन्तर् ॥१३॥ वदे शीतलुर रोयामसर् ॥१३६॥ नव चम्पेयोळ वासुपूज्यर् ॥१४०॥ एवेयरर नदिय मध्यवलि ॥१४१॥ यवेयमुच्चद विमलरल्ले ॥१४२॥ सोवुख्य अनन्त धर्म जिनर् ।।१४३॥ नव शान्ति कुन्थु पररल्ले ॥१४४॥ नेव मललि मुनिसुव्रतर्लल ॥१४५॥ रब नमि सम्मेब नेमि ॥१४६।।
ट्वरूरल्य पावान्तवीरर ॥१४७॥ निव स्थर्ण भवदोळ पार श्वर ॥१४॥ कुछ विवन्द्ययरिवरु 'शुद्धात्म भावनेयिन्द । अवनिय तोरेयु नि* रतियासवियागिइटिसिदाद स्वाभावि।'क'ब'दरीनिकेतनदति'यम्।।१४।। सो विद सुखहनुभूतियु ताने स। तीवि'सम्यक्त्वचारिरि हर पादन दन् (२४)मर्मद सम्यक चारित्र' । तीदिर 'दोळगे निरमलव' ॥१५॥ ए गवरतनयिह'तिह'व कर्मव हरिप । नगदे निश्चय चारित् शुक वायोगेवराकार धर्मवपरिपालिसवउ'[२५]अगणित'वारिज प्रारमा १५१५

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