Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti
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२१६
सिरि मुखक्षय
पार्थ सिद्धि संभ मनोर-क्तिी
वर 'शीतलर्ड' 'माळ अब प्र' स ॥२॥ यर 'देश' वास्पू ज्य' अर् ॥३॥ द्र 'विमलानन्त् ' समय ॥१४॥ रुरु '
धम्र मल्लि नम् इन्क ॥६५॥ ह.अरु 'म् उनिसुव्रत्म' अवेर ॥६६॥ मूरु एळूजन अर'मन गनरम 18RI लररु 'बीररु नेम रि 'विदेह अ' वफ 180 यरु 'शान ति कुन थउ पर अ' वल ॥६६मरर 'कुरुशान्गमरण' रह मत् ॥१०॥ वर 'देश' दउत्तरय 'स् भरया ॥१०१॥ मूरि 'वलय अवर पर इग ॥१०२॥ तिरुगविह प्रभूवमलयअनु'म ॥१०॥ वरुशिसल मा 'देशपद्म' प ॥१०४॥ भरत वेशव सिरियन बघरा ॥१०॥ फनाड अतिशयद् कुरु हु ॥१०॥
'परषदकरिण' यदुसरस् ॥१०७॥ वर 'वयाग्यवुसतत् ॥१०८॥ 'नरर सद्भाग्य भूवलया' ॥१०॥ पर बर् प्रागेपेळूमलषधर्षिय सम' (१५) सवियव 'लालित्यत्व अगे । सवि'काव्यनाजयिन दलि'बरुवन ते । अदु 'सालादमल
मृतरादि ग् ॥११॥ उ* ग् ‘अळपालेल्ल दिव्यवषधवप्पवे । गल'बहेलुच्चे विष्टा' प ॥ 'बग'धर्धिनम् (१६)आगे'तनुविनस्पर्शदगाळि । युगुळि
__ 'सोकलु' अ 'तनुविन न ॥११॥ ब* सिद'व्याधिगलेल लकोनेयामिनीरोग'। दनुवागुवरिद्धिय ज' र। ह 'नन सर्वक्षधर घि सना' [१७] यु 'मनवसोम कि । '
न 'कालकूटवम इतवम् ॥११२॥ प्रदु 'वप्प जिनमपदन्तिर प रिद्धि मु-। नि' द 'यमुखवसार द' सिविष' ।। बदु वम रुतवदागे तनुप्रास्याविषर घिय । सि' (१८)
दबर नेरदद्ष्ट् ' वि ॥११ कुर विदई बोळलुविषव' द 'म रुस सार' । स 'बागुव रिविधियदु सेरिन् सचिय् 'अ मुनियवृष्टियुविष बम रुतसा । खेदष्टिविषधि ३॥
भ' [१५] वनच् ॥११४।। इदु'चित्रविचत्रवावषधरुधिगळ्' । इद 'एन्दुहवरके घरि 'बन्दु' । अदुसारिरुवचित्रबल्लियेमोदलाद' । अदर 'मूलिकेगळम
स्' पक् ।।११।। देदकल, अमकतवदुविष ॥११६॥ मदबळियुव सोपिनरुणा' ॥११॥ रिद्धिगे बरुबदु सरह ॥११॥ गदुकिन तिरुळवु 'केपळक' ॥११॥ प्रोदळ 'मावलदगिड' ॥१२०॥ वदन रसके वममुगुम् ॥१२१॥ रदरलि 'बन्त दुरमल' न ॥१२२॥ रोधन 'कर्णकुन्डल बज् ॥१२३॥ 'उददन्क गणवे' य सकदश् ॥१२४॥ 'नूलिसुव हवनरे' ए ॥१२॥ 'ठददक्षर' गुणवरिय ॥१२६॥ उदय के तिरुगुव पदुम' ॥१२७॥ रद 'रेलेयद हविनरस्' ॥१२८॥ 'पद्मावति दैविय अणिमा' ॥१२६॥ ददनक 'रसमरिण' यदुभि ॥१०॥ इबरलि 'देवेन्द्र यति' हि ॥१३॥ सब "जिनववत गैयदनुपा ॥१३२॥ प्रादर 'लकिय मर' पा ॥१३३॥ गवहर 'सर्वसार' वद ॥१३४॥ इदरिदद 'रससिद्धि बुवस ॥१३५॥ यदु 'प्रारणावाय रस' मा

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