Book Title: Siri Bhuvalay
Author(s): Bhuvalay Prakashan Samiti Delhi
Publisher: Bhuvalay Prakashan Samiti
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पर सुमित्र विजय ज्येव ॥२१६
पप रसद वि 'जयवाग कर लि जर् 'यम मु
मा
पार गबु हा
ह- रुष 'दायुर्वेद जल[३१]पूर्वारजित'। वरद'त्पीडन रोग'ातख. नवेल्लव सार्वजनिकरेल्ल । क' र 'ळेवु निवारण सुखव" इ॥१६६।। रे* गि 'साघिसेरेन्दु पेळदम सार्वन्गे' । बेमादि 'सुखसिद्धिय हो ज'[३२]वेगदि जयिसिरि कर्महिम्सेय नग मार्गादजय' वरेता॥२००।
घगुरगर तन्दे' ये वरद् अवन् ।।२०१॥ गुमिसे 'नाभिराज वास ।।२०२॥ यगरिसे 'जितशत नुपम ॥२०॥ मगुळलु शीरवि जित् प्रार् ई॥२०४॥ सिगुरि 'सम्बरर 'मेघरथर्ष' ॥२०५॥ वग धारणर 'सुपत्इष्ठ' ॥२०६।। सगुरु 'सेन सुग्रीव अ' कन्य ॥२०७॥ दम 'वस्वरय विमलवाहनर'स ॥२०६॥ बगेवरु 'वासु उज्य' रुसक् ।।२०६।। मग त वर्म'सिरियर अह प्रा२१.०।। अधरव 'सिम्हसेन' वरन् अच् ॥२११॥ द्ग 'भानु विश्वन' स्एनवन् ।।२१२॥ सगधरर 'शूरसेनन' बत् ॥२१३॥ अगुरु 'सुवर्शन' विधयए ॥२१४॥ दगरुयु सिरि 'कुमभवन' यय॥२१॥ वगरण 'सुमित्र विजयन' बनस् ॥२१६॥ र्ग 'समुद्र विजय राज' वरन्प्र॥२१७॥ लग 'विश्वसेन सिद्धार्थ अ॥२१॥
एगरिपर् 'पितृकुल' रुज्येव ॥२१६॥ गगनबोळ निलुव 'भूवलय प्रा' ॥२२०॥ रिण* ज सिधियप्पुदु रसद वि 'जयवागे । धिज 'देह मोहमस* का भजसम्भाग्यदजयलाभहूदेल्ल'। सजससाम[३३] यज्ञदपशुहिम २२१ व र 'से अज्ञ रायुर्वेद अज्ञर मारिय । बर 'लि' जर् 'यम सुज" इ रुमा।। प'र'वन्दरिटुत्यागवमाद्धि'नरनोसरियो अज्ञतेयमपरिह ब॥२२२।। वा रिकुम(३४)पाप पुण्यगळ विवेचने'। वारि यिन्दिर पापप्रमत्रा' प्रापार र्गबु हिम्सेघेन्दु' रे 'प्रापत्तुम'सेरलु'बहुदेन्दु विटु'न।२२३॥
* बद् अ 'अहिमसेय शो पद्धतियवम् । यवनम(३५) वेवर' म घा* व।। सिव'गुरु शात्र'व'शरणेन्दु नबुत'सविय नोवुगकलिय'कुचू ।२२४ ग* म 'लु बरलु नावु पुष्पायुर्वेद' द । स 'मर्व पेळि सावुह उ' न सम 'ट्ट डगुव तेरच [३६]नमतवरेल्लरगे'।गम कलिसुवे वदरिम'च२२५ य* श द सम्मोददिदलि बन्दु हेम्मेय' । रस 'स्वर्णवादम' व 'र' लुह सबादवनेममिसब्स्यवसाधिसिपिस'रिमो[३७ भारतदेव-२२६ प्रा शद भाग्यव अहिमसेय सारुव'। ईशन्न हूपिनवव्या प्रोड प्रा' सार समग्रहब द 'नु शो पूज्यपा। दा सा'चार्यरसार' बस् ।२२७
प्रशर ताथियो 'मरुवम् थि ॥२२॥ दश 'विजया' के सुषेणा' न्ता ॥२२॥ शेयोळोमदेरळ मूरु अन्क अन् ॥२३०॥ इ 'सिद्धार्था' मङगला देविनन ॥२३॥ नव 'सुषोमा परुट्वि' नाल्कयदहो ।।२३२॥ गयदारेळेन्दु लक्ष्मरणध ॥२३३॥ रस 'जयरामा सुनन्दात् ॥२३४॥ आशा 'नन्दा विजयामम् अ ॥२३५।। नष अोमबत हत्तु हन् अोमदम् ॥२३६॥ यश द्वादश 'जयश्यामह' ॥२३७॥ मश हदिमूरन्क विहवद ॥२३॥ मश 'लकमिमति सुनभा' पा ॥२३६॥ डश चतुरदश हरपरिणमे प॥२४०॥ अशद 'ऐरा सिरिकान्त देविम् ॥२४॥ से हदिनार हदिमेळ अन्क ॥२४२॥ एसे 'मित्रसेन जावति'यर् ॥२४३॥ रस 'सोमा वरपिला' विन्तु ॥२४४॥ पशे शिव ब्रामहिला' अमम ॥२४॥
पसे 'प्रिय.कारिण दिनेन्टादिव ॥२४६॥ इ सिरिम्पत् नालुकु भूवलय ॥२४७॥ ए* व 'कल्याण कारक वर[३८]षिदुगत'। अबुषिधु सम्राध्धन सू' नो* कवइ 'त्रद हदवनरितु भूबल । ' वरन्फ ॥२४८।।
* स 'दारियमसिद्धरस दिनदोदगिसिहोस'काव्य कविनि[३६]तरु' व रस'बदु मङ्गलमयसिद्धरस कान्य। हुसियद अरहनागमासि ॥२४६।। म् रथ बरेदका [व्यव] केळि हिम्सेय' । सर्वथा 'त्यजिसिदि' न ता ।।पर्वव सरुवसम्पदवेल्लतरुव(४०) निर्मल मनवचनवुता ॥२५॥ प्रोम् 'काय त्रिकरण(मर्म शुद्धिय जिनवयन्य'। शम्कादि 'नेन्दुव च् 'राहम्मम् 'कोनेगिप्पत्एळन् कविरुब'श्रीनिम्म भूवलयकेधन' व२५१ तर नुमन वचन शुद्धिगळ भक्ति यिनदेना । जिनगे 'रगुबेनु (४१) चि* रका। लनमस्कारदे बरुब कय्युगिदिह। मनथियतिशय बंसया॥२५२। ए* नेस्बे चरकमहषिय हिमसेय। सानुरापदिनिय प्रारिसिह। जारस र* अमोघवर्षान्कन सळयोछु । क्षोरिणय सर्वच मतदिम ॥२५॥ सिक पारवतोशन गरिणतदे बह बयय । दनियोळ् पेळुव अङ्ग दविवरसमन्वयअन्तरोन्दोनबत। सविमूरपदोन्दु अक्षरय।२५४ म रललु हत्तुसाविरदिन नूरारु[एरळनुरारु]बरुवनक विदो ई'लू' म सरुवज्ञनेरिदहदिनाल्सुगुणस्थानापरहंत[गुरुपरनपरेयाद''अन्दबभूवलयद समस्त 'ळ' अक्षरांक १०,२०६+ समस्त अन्तराक्षरांक १५,३६०+समत्त अन्तरांतर १,८२७ = २७४२३
अथश अ- २,७९,७११+ ळु २७,४२३=३,०७,१३४

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